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Question 1
गिजुभाई न केवल बच्चों की क्षमताओं, बौद्धिकता में विश्वास व्यक्त करते हैं, अपितु वे उनकी सृजनात्मकता में भी अगाध आस्था रखते हैं। उनके अनुसार कुछ हत्याएँ पीनल कोड की धारा के अधीन नहीं आती। कानूनवेत्ताओं को अपराध जैसी कोई चीजें नजर नहीं आती। कानूनवेत्ताओं की न्याय नीति-सम्बन्धी मर्यादाएँ सिर्फ पीनल कोड से बँधी होती है। शिक्षाशास्त्रियों के पास राज्य, रूढ़ि अथवा धर्म की कोई सत्ता नहीं है, इसलिए जीवन के प्रति जो अपराध होते हैं, उनके लिए न कोई पीनल कोड, न कोई उन्हें निंदनीय मानता, न कोई धार्मिक भय है। जीवन के प्रति होने वाला एक ऐसा ही अपराध है - बालक की सृजन-शक्त्ति की हत्या। ईश्वर ने मनुष्य का सृजन किया और उसे अपनी सृजन-शक्त्ति प्रदान की। मनुष्य के सृजन की अनुत शक्त्ति के समान ही अगणित है। साहित्य एक सृजन है, चित्रकला दूसरा सृजन है, संगीत तीसरा सृजन है और स्थापत्य चौथा सृजन है। इस गिनने बैठा जाए तो मनुष्य के द्वारा बनाई गई अनेकानेक कृतियों को गिनाया जा सकता है। जब शिक्षक या अभिभावक यह तय करते हैं कि बच्चे को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए-वस्तुतः इन निर्णयों में ही वे बालक की सृजन-शक्त्ति का दमन कर देते हैं।
Question 2
गिजुभाई न केवल बच्चों की क्षमताओं, बौद्धिकता में विश्वास व्यक्त करते हैं, अपितु वे उनकी सृजनात्मकता में भी अगाध आस्था रखते हैं। उनके अनुसार कुछ हत्याएँ पीनल कोड की धारा के अधीन नहीं आती। कानूनवेत्ताओं को अपराध जैसी कोई चीजें नजर नहीं आती। कानूनवेत्ताओं की न्याय नीति-सम्बन्धी मर्यादाएँ सिर्फ पीनल कोड से बँधी होती है। शिक्षाशास्त्रियों के पास राज्य, रूढ़ि अथवा धर्म की कोई सत्ता नहीं है, इसलिए जीवन के प्रति जो अपराध होते हैं, उनके लिए न कोई पीनल कोड, न कोई उन्हें निंदनीय मानता, न कोई धार्मिक भय है। जीवन के प्रति होने वाला एक ऐसा ही अपराध है - बालक की सृजन-शक्त्ति की हत्या। ईश्वर ने मनुष्य का सृजन किया और उसे अपनी सृजन-शक्त्ति प्रदान की। मनुष्य के सृजन की अनुत शक्त्ति के समान ही अगणित है। साहित्य एक सृजन है, चित्रकला दूसरा सृजन है, संगीत तीसरा सृजन है और स्थापत्य चौथा सृजन है। इस गिनने बैठा जाए तो मनुष्य के द्वारा बनाई गई अनेकानेक कृतियों को गिनाया जा सकता है। जब शिक्षक या अभिभावक यह तय करते हैं कि बच्चे को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए-वस्तुतः इन निर्णयों में ही वे बालक की सृजन-शक्त्ति का दमन कर देते हैं।
"धोखाधड़ी करना, चोरी करना, रिश्वत लेना" पीनल कोड की धारा के अधीन आते है।
Question 3
गिजुभाई न केवल बच्चों की क्षमताओं, बौद्धिकता में विश्वास व्यक्त करते हैं, अपितु वे उनकी सृजनात्मकता में भी अगाध आस्था रखते हैं। उनके अनुसार कुछ हत्याएँ पीनल कोड की धारा के अधीन नहीं आती। कानूनवेत्ताओं को अपराध जैसी कोई चीजें नजर नहीं आती। कानूनवेत्ताओं की न्याय नीति-सम्बन्धी मर्यादाएँ सिर्फ पीनल कोड से बँधी होती है। शिक्षाशास्त्रियों के पास राज्य, रूढ़ि अथवा धर्म की कोई सत्ता नहीं है, इसलिए जीवन के प्रति जो अपराध होते हैं, उनके लिए न कोई पीनल कोड, न कोई उन्हें निंदनीय मानता, न कोई धार्मिक भय है। जीवन के प्रति होने वाला एक ऐसा ही अपराध है - बालक की सृजन-शक्त्ति की हत्या। ईश्वर ने मनुष्य का सृजन किया और उसे अपनी सृजन-शक्त्ति प्रदान की। मनुष्य के सृजन की अनुत शक्त्ति के समान ही अगणित है। साहित्य एक सृजन है, चित्रकला दूसरा सृजन है, संगीत तीसरा सृजन है और स्थापत्य चौथा सृजन है। इस गिनने बैठा जाए तो मनुष्य के द्वारा बनाई गई अनेकानेक कृतियों को गिनाया जा सकता है। जब शिक्षक या अभिभावक यह तय करते हैं कि बच्चे को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए-वस्तुतः इन निर्णयों में ही वे बालक की सृजन-शक्त्ति का दमन कर देते हैं।
Question 4
गिजुभाई न केवल बच्चों की क्षमताओं, बौद्धिकता में विश्वास व्यक्त करते हैं, अपितु वे उनकी सृजनात्मकता में भी अगाध आस्था रखते हैं। उनके अनुसार कुछ हत्याएँ पीनल कोड की धारा के अधीन नहीं आती। कानूनवेत्ताओं को अपराध जैसी कोई चीजें नजर नहीं आती। कानूनवेत्ताओं की न्याय नीति-सम्बन्धी मर्यादाएँ सिर्फ पीनल कोड से बँधी होती है। शिक्षाशास्त्रियों के पास राज्य, रूढ़ि अथवा धर्म की कोई सत्ता नहीं है, इसलिए जीवन के प्रति जो अपराध होते हैं, उनके लिए न कोई पीनल कोड, न कोई उन्हें निंदनीय मानता, न कोई धार्मिक भय है। जीवन के प्रति होने वाला एक ऐसा ही अपराध है - बालक की सृजन-शक्त्ति की हत्या। ईश्वर ने मनुष्य का सृजन किया और उसे अपनी सृजन-शक्त्ति प्रदान की। मनुष्य के सृजन की अनुत शक्त्ति के समान ही अगणित है। साहित्य एक सृजन है, चित्रकला दूसरा सृजन है, संगीत तीसरा सृजन है और स्थापत्य चौथा सृजन है। इस गिनने बैठा जाए तो मनुष्य के द्वारा बनाई गई अनेकानेक कृतियों को गिनाया जा सकता है। जब शिक्षक या अभिभावक यह तय करते हैं कि बच्चे को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए-वस्तुतः इन निर्णयों में ही वे बालक की सृजन-शक्त्ति का दमन कर देते हैं।
Question 5
गिजुभाई न केवल बच्चों की क्षमताओं, बौद्धिकता में विश्वास व्यक्त करते हैं, अपितु वे उनकी सृजनात्मकता में भी अगाध आस्था रखते हैं। उनके अनुसार कुछ हत्याएँ पीनल कोड की धारा के अधीन नहीं आती। कानूनवेत्ताओं को अपराध जैसी कोई चीजें नजर नहीं आती। कानूनवेत्ताओं की न्याय नीति-सम्बन्धी मर्यादाएँ सिर्फ पीनल कोड से बँधी होती है। शिक्षाशास्त्रियों के पास राज्य, रूढ़ि अथवा धर्म की कोई सत्ता नहीं है, इसलिए जीवन के प्रति जो अपराध होते हैं, उनके लिए न कोई पीनल कोड, न कोई उन्हें निंदनीय मानता, न कोई धार्मिक भय है। जीवन के प्रति होने वाला एक ऐसा ही अपराध है - बालक की सृजन-शक्त्ति की हत्या। ईश्वर ने मनुष्य का सृजन किया और उसे अपनी सृजन-शक्त्ति प्रदान की। मनुष्य के सृजन की अनुत शक्त्ति के समान ही अगणित है। साहित्य एक सृजन है, चित्रकला दूसरा सृजन है, संगीत तीसरा सृजन है और स्थापत्य चौथा सृजन है। इस गिनने बैठा जाए तो मनुष्य के द्वारा बनाई गई अनेकानेक कृतियों को गिनाया जा सकता है। जब शिक्षक या अभिभावक यह तय करते हैं कि बच्चे को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए-वस्तुतः इन निर्णयों में ही वे बालक की सृजन-शक्त्ति का दमन कर देते हैं।
Question 6
गिजुभाई न केवल बच्चों की क्षमताओं, बौद्धिकता में विश्वास व्यक्त करते हैं, अपितु वे उनकी सृजनात्मकता में भी अगाध आस्था रखते हैं। उनके अनुसार कुछ हत्याएँ पीनल कोड की धारा के अधीन नहीं आती। कानूनवेत्ताओं को अपराध जैसी कोई चीजें नजर नहीं आती। कानूनवेत्ताओं की न्याय नीति-सम्बन्धी मर्यादाएँ सिर्फ पीनल कोड से बँधी होती है। शिक्षाशास्त्रियों के पास राज्य, रूढ़ि अथवा धर्म की कोई सत्ता नहीं है, इसलिए जीवन के प्रति जो अपराध होते हैं, उनके लिए न कोई पीनल कोड, न कोई उन्हें निंदनीय मानता, न कोई धार्मिक भय है। जीवन के प्रति होने वाला एक ऐसा ही अपराध है - बालक की सृजन-शक्त्ति की हत्या। ईश्वर ने मनुष्य का सृजन किया और उसे अपनी सृजन-शक्त्ति प्रदान की। मनुष्य के सृजन की अनुत शक्त्ति के समान ही अगणित है। साहित्य एक सृजन है, चित्रकला दूसरा सृजन है, संगीत तीसरा सृजन है और स्थापत्य चौथा सृजन है। इस गिनने बैठा जाए तो मनुष्य के द्वारा बनाई गई अनेकानेक कृतियों को गिनाया जा सकता है। जब शिक्षक या अभिभावक यह तय करते हैं कि बच्चे को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए-वस्तुतः इन निर्णयों में ही वे बालक की सृजन-शक्त्ति का दमन कर देते हैं।
Question 7
गिजुभाई न केवल बच्चों की क्षमताओं, बौद्धिकता में विश्वास व्यक्त करते हैं, अपितु वे उनकी सृजनात्मकता में भी अगाध आस्था रखते हैं। उनके अनुसार कुछ हत्याएँ पीनल कोड की धारा के अधीन नहीं आती। कानूनवेत्ताओं को अपराध जैसी कोई चीजें नजर नहीं आती। कानूनवेत्ताओं की न्याय नीति-सम्बन्धी मर्यादाएँ सिर्फ पीनल कोड से बँधी होती है। शिक्षाशास्त्रियों के पास राज्य, रूढ़ि अथवा धर्म की कोई सत्ता नहीं है, इसलिए जीवन के प्रति जो अपराध होते हैं, उनके लिए न कोई पीनल कोड, न कोई उन्हें निंदनीय मानता, न कोई धार्मिक भय है। जीवन के प्रति होने वाला एक ऐसा ही अपराध है - बालक की सृजन-शक्त्ति की हत्या। ईश्वर ने मनुष्य का सृजन किया और उसे अपनी सृजन-शक्त्ति प्रदान की। मनुष्य के सृजन की अनुत शक्त्ति के समान ही अगणित है। साहित्य एक सृजन है, चित्रकला दूसरा सृजन है, संगीत तीसरा सृजन है और स्थापत्य चौथा सृजन है। इस गिनने बैठा जाए तो मनुष्य के द्वारा बनाई गई अनेकानेक कृतियों को गिनाया जा सकता है। जब शिक्षक या अभिभावक यह तय करते हैं कि बच्चे को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए-वस्तुतः इन निर्णयों में ही वे बालक की सृजन-शक्त्ति का दमन कर देते हैं।
Question 8
गिजुभाई न केवल बच्चों की क्षमताओं, बौद्धिकता में विश्वास व्यक्त करते हैं, अपितु वे उनकी सृजनात्मकता में भी अगाध आस्था रखते हैं। उनके अनुसार कुछ हत्याएँ पीनल कोड की धारा के अधीन नहीं आती। कानूनवेत्ताओं को अपराध जैसी कोई चीजें नजर नहीं आती। कानूनवेत्ताओं की न्याय नीति-सम्बन्धी मर्यादाएँ सिर्फ पीनल कोड से बँधी होती है। शिक्षाशास्त्रियों के पास राज्य, रूढ़ि अथवा धर्म की कोई सत्ता नहीं है, इसलिए जीवन के प्रति जो अपराध होते हैं, उनके लिए न कोई पीनल कोड, न कोई उन्हें निंदनीय मानता, न कोई धार्मिक भय है। जीवन के प्रति होने वाला एक ऐसा ही अपराध है - बालक की सृजन-शक्त्ति की हत्या। ईश्वर ने मनुष्य का सृजन किया और उसे अपनी सृजन-शक्त्ति प्रदान की। मनुष्य के सृजन की अनुत शक्त्ति के समान ही अगणित है। साहित्य एक सृजन है, चित्रकला दूसरा सृजन है, संगीत तीसरा सृजन है और स्थापत्य चौथा सृजन है। इस गिनने बैठा जाए तो मनुष्य के द्वारा बनाई गई अनेकानेक कृतियों को गिनाया जा सकता है। जब शिक्षक या अभिभावक यह तय करते हैं कि बच्चे को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए-वस्तुतः इन निर्णयों में ही वे बालक की सृजन-शक्त्ति का दमन कर देते हैं।
Question 9
गिजुभाई न केवल बच्चों की क्षमताओं, बौद्धिकता में विश्वास व्यक्त करते हैं, अपितु वे उनकी सृजनात्मकता में भी अगाध आस्था रखते हैं। उनके अनुसार कुछ हत्याएँ पीनल कोड की धारा के अधीन नहीं आती। कानूनवेत्ताओं को अपराध जैसी कोई चीजें नजर नहीं आती। कानूनवेत्ताओं की न्याय नीति-सम्बन्धी मर्यादाएँ सिर्फ पीनल कोड से बँधी होती है। शिक्षाशास्त्रियों के पास राज्य, रूढ़ि अथवा धर्म की कोई सत्ता नहीं है, इसलिए जीवन के प्रति जो अपराध होते हैं, उनके लिए न कोई पीनल कोड, न कोई उन्हें निंदनीय मानता, न कोई धार्मिक भय है। जीवन के प्रति होने वाला एक ऐसा ही अपराध है - बालक की सृजन-शक्त्ति की हत्या। ईश्वर ने मनुष्य का सृजन किया और उसे अपनी सृजन-शक्त्ति प्रदान की। मनुष्य के सृजन की अनुत शक्त्ति के समान ही अगणित है। साहित्य एक सृजन है, चित्रकला दूसरा सृजन है, संगीत तीसरा सृजन है और स्थापत्य चौथा सृजन है। इस गिनने बैठा जाए तो मनुष्य के द्वारा बनाई गई अनेकानेक कृतियों को गिनाया जा सकता है। जब शिक्षक या अभिभावक यह तय करते हैं कि बच्चे को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए-वस्तुतः इन निर्णयों में ही वे बालक की सृजन-शक्त्ति का दमन कर देते हैं।
Question 10
सुनता हूँ मैंने भी देखा,
काले बादल में रहती चाँदी की रेखा।
काले बादल जाति-द्वेष के,
काले बादल विश्व-क्लेश के,
काले बादल उठते पथ पर
नवस्वतंत्रता के प्रवेश के!
सुनता आया हूँ, है देखा
काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा!
Question 11
सुनता हूँ मैंने भी देखा,
काले बादल में रहती चाँदी की रेखा।
काले बादल जाति-द्वेष के,
काले बादल विश्व-क्लेश के,
काले बादल उठते पथ पर
नवस्वतंत्रता के प्रवेश के!
सुनता आया हूँ, है देखा
काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा!
Question 12
सुनता हूँ मैंने भी देखा,
काले बादल में रहती चाँदी की रेखा।
काले बादल जाति-द्वेष के,
काले बादल विश्व-क्लेश के,
काले बादल उठते पथ पर
नवस्वतंत्रता के प्रवेश के!
सुनता आया हूँ, है देखा
काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा!
Question 13
सुनता हूँ मैंने भी देखा,
काले बादल में रहती चाँदी की रेखा।
काले बादल जाति-द्वेष के,
काले बादल विश्व-क्लेश के,
काले बादल उठते पथ पर
नवस्वतंत्रता के प्रवेश के!
सुनता आया हूँ, है देखा
काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा!
Question 14
सुनता हूँ मैंने भी देखा,
काले बादल में रहती चाँदी की रेखा।
काले बादल जाति-द्वेष के,
काले बादल विश्व-क्लेश के,
काले बादल उठते पथ पर
नवस्वतंत्रता के प्रवेश के!
सुनता आया हूँ, है देखा
काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा!
Question 15
सुनता हूँ मैंने भी देखा,
काले बादल में रहती चाँदी की रेखा।
काले बादल जाति-द्वेष के,
काले बादल विश्व-क्लेश के,
काले बादल उठते पथ पर
नवस्वतंत्रता के प्रवेश के!
सुनता आया हूँ, है देखा
काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा!
Question 16
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर देखी
पकी-सुनहली फसलों की मुसकान
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर सुन पाया
धान कुटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर सूँघे
मौलसिरी के ढेर-ढेर से ताजे-टटके फूल
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर छू पाया
अपनी गँवई पगडंडी की चंदनवर्णी धूल
Question 17
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर देखी
पकी-सुनहली फसलों की मुसकान
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर सुन पाया
धान कुटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर सूँघे
मौलसिरी के ढेर-ढेर से ताजे-टटके फूल
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर छू पाया
अपनी गँवई पगडंडी की चंदनवर्णी धूल
Question 18
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर देखी
पकी-सुनहली फसलों की मुसकान
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर सुन पाया
धान कुटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर सूँघे
मौलसिरी के ढेर-ढेर से ताजे-टटके फूल
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर छू पाया
अपनी गँवई पगडंडी की चंदनवर्णी धूल
Question 19
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर देखी
पकी-सुनहली फसलों की मुसकान
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर सुन पाया
धान कुटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर सूँघे
मौलसिरी के ढेर-ढेर से ताजे-टटके फूल
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर छू पाया
अपनी गँवई पगडंडी की चंदनवर्णी धूल
Question 20
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर देखी
पकी-सुनहली फसलों की मुसकान
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर सुन पाया
धान कुटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर सूँघे
मौलसिरी के ढेर-ढेर से ताजे-टटके फूल
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर छू पाया
अपनी गँवई पगडंडी की चंदनवर्णी धूल
Question 21
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर देखी
पकी-सुनहली फसलों की मुसकान
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर सुन पाया
धान कुटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर सूँघे
मौलसिरी के ढेर-ढेर से ताजे-टटके फूल
बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर छू पाया
अपनी गँवई पगडंडी की चंदनवर्णी धूल
Question 22
Question 23
Question 24
Question 25
Question 26
Question 27
Question 28
Question 29
Question 30
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