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पद्यांश पर हिंदी भाषा का क्विज:01.08.2019

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Question 1

निर्देश : कविता की पंक्त्तियाँ पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिए।

मेघ आए, बड़े बन-ठन के सँवर के
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा नदी ठिठकी घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर घर की
बरस बाद सुधि लीन्ही
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
झितिज-अटारी गहराई दामिनी दमकी,
क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके,
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
‘मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के’ पंक्त्ति का भाव किसमें है?

Question 2

निर्देश : कविता की पंक्त्तियाँ पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिए।

मेघ आए, बड़े बन-ठन के सँवर के
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा नदी ठिठकी घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर घर की
बरस बाद सुधि लीन्ही
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
झितिज-अटारी गहराई दामिनी दमकी,
क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके,
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
मेघों के आने से क्या लगता है?

Question 3

निर्देश : कविता की पंक्त्तियाँ पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिए।

मेघ आए, बड़े बन-ठन के सँवर के
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा नदी ठिठकी घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर घर की
बरस बाद सुधि लीन्ही
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
झितिज-अटारी गहराई दामिनी दमकी,
क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके,
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’ इस पंक्ति का भाव किसमें है?

Question 4

निर्देश : कविता की पंक्त्तियाँ पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिए।

मेघ आए, बड़े बन-ठन के सँवर के
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा नदी ठिठकी घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर घर की
बरस बाद सुधि लीन्ही
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
झितिज-अटारी गहराई दामिनी दमकी,
क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके,
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
पूरी कविता में कौन सा अलंकार हैं?

Question 5

निर्देश : कविता की पंक्त्तियाँ पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिए।

मेघ आए, बड़े बन-ठन के सँवर के
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा नदी ठिठकी घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर घर की
बरस बाद सुधि लीन्ही
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के
झितिज-अटारी गहराई दामिनी दमकी,
क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके,
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
‘पाहुन’ शब्द का क्या अर्थ हैं?

Question 6

निर्देश: निम्नलिखित काव्यांश को पढकर दिए गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए।
जीवन के इस मोड़ पर, कुछ भी कहा जाता नहीं।
अधरों की ड्योढ़ी पर, शब्दों के पहरे हैं।
हँसने को हँसते हैं, जीने को जीते हैं
साधन-सुभितों में, ज्यादा ही रीते हैं।
बाहर से हरे-भरे, भीतर घाव मगर गहरे
सबके लिए गूँगे हैं, अपने लिए बहरे हैं।
“कुछ भी कहा जाता नहीं” - ऐसा क्यों?

Question 7

निर्देश: निम्नलिखित काव्यांश को पढकर दिए गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए।
जीवन के इस मोड़ पर, कुछ भी कहा जाता नहीं।
अधरों की ड्योढ़ी पर, शब्दों के पहरे हैं।
हँसने को हँसते हैं, जीने को जीते हैं
साधन-सुभितों में, ज्यादा ही रीते हैं।
बाहर से हरे-भरे, भीतर घाव मगर गहरे
सबके लिए गूँगे हैं, अपने लिए बहरे हैं।
कविता की पक्तियों में मुख्यतः बात की गई है

Question 8

निर्देश: निम्नलिखित काव्यांश को पढकर दिए गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए।
जीवन के इस मोड़ पर, कुछ भी कहा जाता नहीं।
अधरों की ड्योढ़ी पर, शब्दों के पहरे हैं।
हँसने को हँसते हैं, जीने को जीते हैं
साधन-सुभितों में, ज्यादा ही रीते हैं।
बाहर से हरे-भरे, भीतर घाव मगर गहरे
सबके लिए गूँगे हैं, अपने लिए बहरे हैं।
कविता की पंक्तियों के आधार पर कहा जा सकता है कि

Question 9

निर्देश: निम्नलिखित काव्यांश को पढकर दिए गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए।
जीवन के इस मोड़ पर, कुछ भी कहा जाता नहीं।
अधरों की ड्योढ़ी पर, शब्दों के पहरे हैं।
हँसने को हँसते हैं, जीने को जीते हैं
साधन-सुभितों में, ज्यादा ही रीते हैं।
बाहर से हरे-भरे, भीतर घाव मगर गहरे
सबके लिए गूँगे हैं, अपने लिए बहरे हैं।
"ड्योढ़ी” का अर्थ है

Question 10

निर्देश: निम्नलिखित काव्यांश को पढकर दिए गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए।
जीवन के इस मोड़ पर, कुछ भी कहा जाता नहीं।
अधरों की ड्योढ़ी पर, शब्दों के पहरे हैं।
हँसने को हँसते हैं, जीने को जीते हैं
साधन-सुभितों में, ज्यादा ही रीते हैं।
बाहर से हरे-भरे, भीतर घाव मगर गहरे
सबके लिए गूँगे हैं, अपने लिए बहरे हैं।
"भीतर के भाव” से तात्पर्य है
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