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गद्यांश पर हिंदी भाषा का क्विज:21.10.2019
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Question 1
निम्न काव्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिएः
मैं नही चाहता चिर सुख
चाहता नहीं, अविरल दुख,
सुख-दुख की आंख-मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख।
सुख दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन
फिर घन से ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन
जग पीड़ित है अति दुख से
जग पीड़ित है अति सुख से
मानव जग में बंट जावें,
दुख-सुख से औ’ सुख-दुख से।
अविरत दुःख है उत्पीड़न,
अविरत सुख भी उत्पीड़न
सुख-दुःख की निशा-दिवा में
सोता जगता जग जीवन
मैं नही चाहता चिर सुख
चाहता नहीं, अविरल दुख,
सुख-दुख की आंख-मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख।
सुख दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन
फिर घन से ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन
जग पीड़ित है अति दुख से
जग पीड़ित है अति सुख से
मानव जग में बंट जावें,
दुख-सुख से औ’ सुख-दुख से।
अविरत दुःख है उत्पीड़न,
अविरत सुख भी उत्पीड़न
सुख-दुःख की निशा-दिवा में
सोता जगता जग जीवन
कवि चिर सुख या चिर दुख क्यों नही चाहता है?
Question 2
निम्न काव्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिएः
मैं नही चाहता चिर सुख
चाहता नहीं, अविरल दुख,
सुख-दुख की आंख-मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख।
सुख दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन
फिर घन से ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन
जग पीड़ित है अति दुख से
जग पीड़ित है अति सुख से
मानव जग में बंट जावें,
दुख-सुख से औ’ सुख-दुख से।
अविरत दुःख है उत्पीड़न,
अविरत सुख भी उत्पीड़न
सुख-दुःख की निशा-दिवा में
सोता जगता जग जीवन
मैं नही चाहता चिर सुख
चाहता नहीं, अविरल दुख,
सुख-दुख की आंख-मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख।
सुख दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन
फिर घन से ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन
जग पीड़ित है अति दुख से
जग पीड़ित है अति सुख से
मानव जग में बंट जावें,
दुख-सुख से औ’ सुख-दुख से।
अविरत दुःख है उत्पीड़न,
अविरत सुख भी उत्पीड़न
सुख-दुःख की निशा-दिवा में
सोता जगता जग जीवन
कवि मानव की किस स्थिति की कामना करता है?
Question 3
निम्न काव्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिएः
मैं नही चाहता चिर सुख
चाहता नहीं, अविरल दुख,
सुख-दुख की आंख-मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख।
सुख दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन
फिर घन से ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन
जग पीड़ित है अति दुख से
जग पीड़ित है अति सुख से
मानव जग में बंट जावें,
दुख-सुख से औ’ सुख-दुख से।
अविरत दुःख है उत्पीड़न,
अविरत सुख भी उत्पीड़न
सुख-दुःख की निशा-दिवा में
सोता जगता जग जीवन
मैं नही चाहता चिर सुख
चाहता नहीं, अविरल दुख,
सुख-दुख की आंख-मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख।
सुख दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन
फिर घन से ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन
जग पीड़ित है अति दुख से
जग पीड़ित है अति सुख से
मानव जग में बंट जावें,
दुख-सुख से औ’ सुख-दुख से।
अविरत दुःख है उत्पीड़न,
अविरत सुख भी उत्पीड़न
सुख-दुःख की निशा-दिवा में
सोता जगता जग जीवन
इस काव्यांश में नाद सौंदर्य की दृष्टि से कौन सा विकल्प उपयुक्त है
Question 4
निम्न काव्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिएः
मैं नही चाहता चिर सुख
चाहता नहीं, अविरल दुख,
सुख-दुख की आंख-मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख।
सुख दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन
फिर घन से ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन
जग पीड़ित है अति दुख से
जग पीड़ित है अति सुख से
मानव जग में बंट जावें,
दुख-सुख से औ’ सुख-दुख से।
अविरत दुःख है उत्पीड़न,
अविरत सुख भी उत्पीड़न
सुख-दुःख की निशा-दिवा में
सोता जगता जग जीवन
मैं नही चाहता चिर सुख
चाहता नहीं, अविरल दुख,
सुख-दुख की आंख-मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख।
सुख दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन
फिर घन से ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन
जग पीड़ित है अति दुख से
जग पीड़ित है अति सुख से
मानव जग में बंट जावें,
दुख-सुख से औ’ सुख-दुख से।
अविरत दुःख है उत्पीड़न,
अविरत सुख भी उत्पीड़न
सुख-दुःख की निशा-दिवा में
सोता जगता जग जीवन
कवि ने सुख और दुख का साम्य किनसे बताया है?
Question 5
निम्न काव्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिएः
मैं नही चाहता चिर सुख
चाहता नहीं, अविरल दुख,
सुख-दुख की आंख-मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख।
सुख दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन
फिर घन से ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन
जग पीड़ित है अति दुख से
जग पीड़ित है अति सुख से
मानव जग में बंट जावें,
दुख-सुख से औ’ सुख-दुख से।
अविरत दुःख है उत्पीड़न,
अविरत सुख भी उत्पीड़न
सुख-दुःख की निशा-दिवा में
सोता जगता जग जीवन
मैं नही चाहता चिर सुख
चाहता नहीं, अविरल दुख,
सुख-दुख की आंख-मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख।
सुख दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन
फिर घन से ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन
जग पीड़ित है अति दुख से
जग पीड़ित है अति सुख से
मानव जग में बंट जावें,
दुख-सुख से औ’ सुख-दुख से।
अविरत दुःख है उत्पीड़न,
अविरत सुख भी उत्पीड़न
सुख-दुःख की निशा-दिवा में
सोता जगता जग जीवन
इस काव्यांश में प्रमुख भाव है
Question 6
निम्न काव्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिएः
मैं नही चाहता चिर सुख
चाहता नहीं, अविरल दुख,
सुख-दुख की आंख-मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख।
सुख दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन
फिर घन से ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन
जग पीड़ित है अति दुख से
जग पीड़ित है अति सुख से
मानव जग में बंट जावें,
दुख-सुख से औ’ सुख-दुख से।
अविरत दुःख है उत्पीड़न,
अविरत सुख भी उत्पीड़न
सुख-दुःख की निशा-दिवा में
सोता जगता जग जीवन
मैं नही चाहता चिर सुख
चाहता नहीं, अविरल दुख,
सुख-दुख की आंख-मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख।
सुख दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन
फिर घन से ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन
जग पीड़ित है अति दुख से
जग पीड़ित है अति सुख से
मानव जग में बंट जावें,
दुख-सुख से औ’ सुख-दुख से।
अविरत दुःख है उत्पीड़न,
अविरत सुख भी उत्पीड़न
सुख-दुःख की निशा-दिवा में
सोता जगता जग जीवन
‘सुख’ और ‘दुख’ से ध्वनि साम्य वाला शब्द है
Question 7
निर्देश:- गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिए -
अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है, हालांकि हरेक देश के पास इसकी कोई-न-कोई आधिकारिक व्याख्या जरूर है कि वे कैसे और किन सन्दर्भों में आधुनिक हो रहे हैं, लेकिन इस बारे में मेरा कहना है कि आधुनिकता क अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है,ो समझने के लिए जरूरी है कि आप अपने अन्दर झाँक सकें, इससे आपको पता चलेगा कि आधुनिकता की राह पर बढ़ने के लिए समाज को किन चीजों की जरूरत होती है, बेशक, आज हर कोई मॉडर्न होना चाहता है, लेकिन आधुनिकता की राह उतनी स्पष्ट नहीं है, जितनी वह मानी जाती है, इसीलिए मैं यह बात बार-बार कहता हूँ कि पश्चिमी समाज कभी-कभी आधुनिक नहीं रहे, पश्चिम के पास एकमात्र उल्लेखनीय चीज है साइंस, जिसमें उसने तरक्की की लेकिन जिन साइंटिस्टों के बलबूते वहाँ आधुनिकता का परचम लहराया जाता है, खुद वे साइंटिस्ट अपने कल्वर में उलझे रहते हैं, उनका यह कल्चर, आधुनिकता का झण्डाबरदार नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता है कि उनके कल्वर पर दूसरी संस्कृतियों और लोकाचारों का असर नहीं हुआ होगा, अगर यह असर हुआ है तो सिर्फ वही आधुनिक क्यों कहा जाए ?
(ब्रूनो लातूर-फ्रेंच सोशल साइंटिस्ट)
अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है, हालांकि हरेक देश के पास इसकी कोई-न-कोई आधिकारिक व्याख्या जरूर है कि वे कैसे और किन सन्दर्भों में आधुनिक हो रहे हैं, लेकिन इस बारे में मेरा कहना है कि आधुनिकता क अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है,ो समझने के लिए जरूरी है कि आप अपने अन्दर झाँक सकें, इससे आपको पता चलेगा कि आधुनिकता की राह पर बढ़ने के लिए समाज को किन चीजों की जरूरत होती है, बेशक, आज हर कोई मॉडर्न होना चाहता है, लेकिन आधुनिकता की राह उतनी स्पष्ट नहीं है, जितनी वह मानी जाती है, इसीलिए मैं यह बात बार-बार कहता हूँ कि पश्चिमी समाज कभी-कभी आधुनिक नहीं रहे, पश्चिम के पास एकमात्र उल्लेखनीय चीज है साइंस, जिसमें उसने तरक्की की लेकिन जिन साइंटिस्टों के बलबूते वहाँ आधुनिकता का परचम लहराया जाता है, खुद वे साइंटिस्ट अपने कल्वर में उलझे रहते हैं, उनका यह कल्चर, आधुनिकता का झण्डाबरदार नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता है कि उनके कल्वर पर दूसरी संस्कृतियों और लोकाचारों का असर नहीं हुआ होगा, अगर यह असर हुआ है तो सिर्फ वही आधुनिक क्यों कहा जाए ?
(ब्रूनो लातूर-फ्रेंच सोशल साइंटिस्ट)
लेखक ने किस बात की अस्पष्टता की ओर संकेत किया है ?
Question 8
निर्देश:- गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिए -
अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है, हालांकि हरेक देश के पास इसकी कोई-न-कोई आधिकारिक व्याख्या जरूर है कि वे कैसे और किन सन्दर्भों में आधुनिक हो रहे हैं, लेकिन इस बारे में मेरा कहना है कि आधुनिकता क अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है,ो समझने के लिए जरूरी है कि आप अपने अन्दर झाँक सकें, इससे आपको पता चलेगा कि आधुनिकता की राह पर बढ़ने के लिए समाज को किन चीजों की जरूरत होती है, बेशक, आज हर कोई मॉडर्न होना चाहता है, लेकिन आधुनिकता की राह उतनी स्पष्ट नहीं है, जितनी वह मानी जाती है, इसीलिए मैं यह बात बार-बार कहता हूँ कि पश्चिमी समाज कभी-कभी आधुनिक नहीं रहे, पश्चिम के पास एकमात्र उल्लेखनीय चीज है साइंस, जिसमें उसने तरक्की की लेकिन जिन साइंटिस्टों के बलबूते वहाँ आधुनिकता का परचम लहराया जाता है, खुद वे साइंटिस्ट अपने कल्वर में उलझे रहते हैं, उनका यह कल्चर, आधुनिकता का झण्डाबरदार नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता है कि उनके कल्वर पर दूसरी संस्कृतियों और लोकाचारों का असर नहीं हुआ होगा, अगर यह असर हुआ है तो सिर्फ वही आधुनिक क्यों कहा जाए ?
(ब्रूनो लातूर-फ्रेंच सोशल साइंटिस्ट)
अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है, हालांकि हरेक देश के पास इसकी कोई-न-कोई आधिकारिक व्याख्या जरूर है कि वे कैसे और किन सन्दर्भों में आधुनिक हो रहे हैं, लेकिन इस बारे में मेरा कहना है कि आधुनिकता क अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है,ो समझने के लिए जरूरी है कि आप अपने अन्दर झाँक सकें, इससे आपको पता चलेगा कि आधुनिकता की राह पर बढ़ने के लिए समाज को किन चीजों की जरूरत होती है, बेशक, आज हर कोई मॉडर्न होना चाहता है, लेकिन आधुनिकता की राह उतनी स्पष्ट नहीं है, जितनी वह मानी जाती है, इसीलिए मैं यह बात बार-बार कहता हूँ कि पश्चिमी समाज कभी-कभी आधुनिक नहीं रहे, पश्चिम के पास एकमात्र उल्लेखनीय चीज है साइंस, जिसमें उसने तरक्की की लेकिन जिन साइंटिस्टों के बलबूते वहाँ आधुनिकता का परचम लहराया जाता है, खुद वे साइंटिस्ट अपने कल्वर में उलझे रहते हैं, उनका यह कल्चर, आधुनिकता का झण्डाबरदार नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता है कि उनके कल्वर पर दूसरी संस्कृतियों और लोकाचारों का असर नहीं हुआ होगा, अगर यह असर हुआ है तो सिर्फ वही आधुनिक क्यों कहा जाए ?
(ब्रूनो लातूर-फ्रेंच सोशल साइंटिस्ट)
हर देश ने -
Question 9
निर्देश:- गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिए -
अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है, हालांकि हरेक देश के पास इसकी कोई-न-कोई आधिकारिक व्याख्या जरूर है कि वे कैसे और किन सन्दर्भों में आधुनिक हो रहे हैं, लेकिन इस बारे में मेरा कहना है कि आधुनिकता क अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है,ो समझने के लिए जरूरी है कि आप अपने अन्दर झाँक सकें, इससे आपको पता चलेगा कि आधुनिकता की राह पर बढ़ने के लिए समाज को किन चीजों की जरूरत होती है, बेशक, आज हर कोई मॉडर्न होना चाहता है, लेकिन आधुनिकता की राह उतनी स्पष्ट नहीं है, जितनी वह मानी जाती है, इसीलिए मैं यह बात बार-बार कहता हूँ कि पश्चिमी समाज कभी-कभी आधुनिक नहीं रहे, पश्चिम के पास एकमात्र उल्लेखनीय चीज है साइंस, जिसमें उसने तरक्की की लेकिन जिन साइंटिस्टों के बलबूते वहाँ आधुनिकता का परचम लहराया जाता है, खुद वे साइंटिस्ट अपने कल्वर में उलझे रहते हैं, उनका यह कल्चर, आधुनिकता का झण्डाबरदार नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता है कि उनके कल्वर पर दूसरी संस्कृतियों और लोकाचारों का असर नहीं हुआ होगा, अगर यह असर हुआ है तो सिर्फ वही आधुनिक क्यों कहा जाए ?
(ब्रूनो लातूर-फ्रेंच सोशल साइंटिस्ट)
अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है, हालांकि हरेक देश के पास इसकी कोई-न-कोई आधिकारिक व्याख्या जरूर है कि वे कैसे और किन सन्दर्भों में आधुनिक हो रहे हैं, लेकिन इस बारे में मेरा कहना है कि आधुनिकता क अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है,ो समझने के लिए जरूरी है कि आप अपने अन्दर झाँक सकें, इससे आपको पता चलेगा कि आधुनिकता की राह पर बढ़ने के लिए समाज को किन चीजों की जरूरत होती है, बेशक, आज हर कोई मॉडर्न होना चाहता है, लेकिन आधुनिकता की राह उतनी स्पष्ट नहीं है, जितनी वह मानी जाती है, इसीलिए मैं यह बात बार-बार कहता हूँ कि पश्चिमी समाज कभी-कभी आधुनिक नहीं रहे, पश्चिम के पास एकमात्र उल्लेखनीय चीज है साइंस, जिसमें उसने तरक्की की लेकिन जिन साइंटिस्टों के बलबूते वहाँ आधुनिकता का परचम लहराया जाता है, खुद वे साइंटिस्ट अपने कल्वर में उलझे रहते हैं, उनका यह कल्चर, आधुनिकता का झण्डाबरदार नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता है कि उनके कल्वर पर दूसरी संस्कृतियों और लोकाचारों का असर नहीं हुआ होगा, अगर यह असर हुआ है तो सिर्फ वही आधुनिक क्यों कहा जाए ?
(ब्रूनो लातूर-फ्रेंच सोशल साइंटिस्ट)
लेखक के अनुसार आधुनिक होने के लिए क्या जरूरी है ?
Question 10
निर्देश:- गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिए -
अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है, हालांकि हरेक देश के पास इसकी कोई-न-कोई आधिकारिक व्याख्या जरूर है कि वे कैसे और किन सन्दर्भों में आधुनिक हो रहे हैं, लेकिन इस बारे में मेरा कहना है कि आधुनिकता क अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है,ो समझने के लिए जरूरी है कि आप अपने अन्दर झाँक सकें, इससे आपको पता चलेगा कि आधुनिकता की राह पर बढ़ने के लिए समाज को किन चीजों की जरूरत होती है, बेशक, आज हर कोई मॉडर्न होना चाहता है, लेकिन आधुनिकता की राह उतनी स्पष्ट नहीं है, जितनी वह मानी जाती है, इसीलिए मैं यह बात बार-बार कहता हूँ कि पश्चिमी समाज कभी-कभी आधुनिक नहीं रहे, पश्चिम के पास एकमात्र उल्लेखनीय चीज है साइंस, जिसमें उसने तरक्की की लेकिन जिन साइंटिस्टों के बलबूते वहाँ आधुनिकता का परचम लहराया जाता है, खुद वे साइंटिस्ट अपने कल्वर में उलझे रहते हैं, उनका यह कल्चर, आधुनिकता का झण्डाबरदार नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता है कि उनके कल्वर पर दूसरी संस्कृतियों और लोकाचारों का असर नहीं हुआ होगा, अगर यह असर हुआ है तो सिर्फ वही आधुनिक क्यों कहा जाए ?
(ब्रूनो लातूर-फ्रेंच सोशल साइंटिस्ट)
अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है, हालांकि हरेक देश के पास इसकी कोई-न-कोई आधिकारिक व्याख्या जरूर है कि वे कैसे और किन सन्दर्भों में आधुनिक हो रहे हैं, लेकिन इस बारे में मेरा कहना है कि आधुनिकता क अभी भी इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि आधुनिक कही जाने वाली आज की दुनिया आखिर कैसे संचालित हो रही है,ो समझने के लिए जरूरी है कि आप अपने अन्दर झाँक सकें, इससे आपको पता चलेगा कि आधुनिकता की राह पर बढ़ने के लिए समाज को किन चीजों की जरूरत होती है, बेशक, आज हर कोई मॉडर्न होना चाहता है, लेकिन आधुनिकता की राह उतनी स्पष्ट नहीं है, जितनी वह मानी जाती है, इसीलिए मैं यह बात बार-बार कहता हूँ कि पश्चिमी समाज कभी-कभी आधुनिक नहीं रहे, पश्चिम के पास एकमात्र उल्लेखनीय चीज है साइंस, जिसमें उसने तरक्की की लेकिन जिन साइंटिस्टों के बलबूते वहाँ आधुनिकता का परचम लहराया जाता है, खुद वे साइंटिस्ट अपने कल्वर में उलझे रहते हैं, उनका यह कल्चर, आधुनिकता का झण्डाबरदार नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता है कि उनके कल्वर पर दूसरी संस्कृतियों और लोकाचारों का असर नहीं हुआ होगा, अगर यह असर हुआ है तो सिर्फ वही आधुनिक क्यों कहा जाए ?
(ब्रूनो लातूर-फ्रेंच सोशल साइंटिस्ट)
‘पश्चिमी समाज कभी-कभी आधुुनिक नहीं रहे,’ लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा ?
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