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Question 1
Question 2
Question 3
Question 4
He stalks in his vivid stripes
The few steps of his cage,
On pads of velvet quiet,
In his quiet rage.
He should be lurking in shadow,
Sliding through long grass
Near the water hole
Where plump deer pass.
He should be snarling around houses
At the jungle's edge,
Baring his white fangs, his claws,
Terrorizing the village!
But he's locked in a concrete cell,
His strength behind bars,
Stalking the length of his cage,
Ignoring visitors.
He hears the last voice at night,
The patrolling cars,
And stares with his brilliant eyes
At the brilliant stars.
In the above poem who is being kept captive?
Question 5
He stalks in his vivid stripes
The few steps of his cage,
On pads of velvet quiet,
In his quiet rage.
He should be lurking in shadow,
Sliding through long grass
Near the water hole
Where plump deer pass.
He should be snarling around houses
At the jungle's edge,
Baring his white fangs, his claws,
Terrorizing the village!
But he's locked in a concrete cell,
His strength behind bars,
Stalking the length of his cage,
Ignoring visitors.
He hears the last voice at night,
The patrolling cars,
And stares with his brilliant eyes
At the brilliant stars.
Question 6
He stalks in his vivid stripes
The few steps of his cage,
On pads of velvet quiet,
In his quiet rage.
He should be lurking in shadow,
Sliding through long grass
Near the water hole
Where plump deer pass.
He should be snarling around houses
At the jungle's edge,
Baring his white fangs, his claws,
Terrorizing the village!
But he's locked in a concrete cell,
His strength behind bars,
Stalking the length of his cage,
Ignoring visitors.
He hears the last voice at night,
The patrolling cars,
And stares with his brilliant eyes
At the brilliant stars.
Question 7
हमारे जीवन में उत्साह का विशेष स्थान है। किसी काम को करने के लिए सदा तैयार रहना तथा उस काम को करने में आनंद अनुभव करना उत्साह का प्रमुख लक्षण है। उत्साह कई प्रकार का होता है, परंतु सच्चा उत्साह वही है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है तब जिस सुख को वह अनुभव करता है वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। इसी उत्साह के लिए कवियों ने कहा है कि," साहस से भरी हुई उमंग ही उत्साह है।" जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दुख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सब से उत्पन्न आनंद भी उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है और वह है दान- त्याग का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ रखता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। इसी प्रकार युद्ध क्षेत्र में वीरता दिखाने वाले तथा दया के लिए वीरता दिखाने वाले भी अपने- अपने क्षेत्र में उत्साह का कार्य करने वाले हैं।
उत्साह एक ऐसा मनोभाव है जो किसी कार्य विशेष में तो मनुष्य को प्रेरित करता ही है, साथ ही इस भाव के होने पर अन्य कार्य में भी उसकी शक्ति को बढ़ावा मिलता है। मन में स्फूर्ति होने पर प्रत्येक कार्य में उत्साह जागता है। यदि किसी व्यक्ति की कोई बड़ी इच्छा पूर्ण हो जाती है या बहुत - सा लाभ मिल जाता है तो उस सफलता से उत्साहित होकर बिना कारण ही वह अन्य काम करने के लिए भी खुशी से तैयार हो जाता है।
आलस्य उत्साह का सबसे बड़ा शत्रु है। जो व्यक्ति आलस्य से भरा होगा उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। आलस्य तो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य को पीछे की ओर खींचता है। आलसी व्यापारी के व्यापार को ठप करने में अधिक समय नहीं लगता। उत्साही व्यक्ति सफलता ऐसा फल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़ निश्चय होता है।
"मनोभाव" शब्द में संधि है-
Question 8
हमारे जीवन में उत्साह का विशेष स्थान है। किसी काम को करने के लिए सदा तैयार रहना तथा उस काम को करने में आनंद अनुभव करना उत्साह का प्रमुख लक्षण है। उत्साह कई प्रकार का होता है, परंतु सच्चा उत्साह वही है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है तब जिस सुख को वह अनुभव करता है वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। इसी उत्साह के लिए कवियों ने कहा है कि," साहस से भरी हुई उमंग ही उत्साह है।" जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दुख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सब से उत्पन्न आनंद भी उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है और वह है दान- त्याग का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ रखता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। इसी प्रकार युद्ध क्षेत्र में वीरता दिखाने वाले तथा दया के लिए वीरता दिखाने वाले भी अपने- अपने क्षेत्र में उत्साह का कार्य करने वाले हैं।
उत्साह एक ऐसा मनोभाव है जो किसी कार्य विशेष में तो मनुष्य को प्रेरित करता ही है, साथ ही इस भाव के होने पर अन्य कार्य में भी उसकी शक्ति को बढ़ावा मिलता है। मन में स्फूर्ति होने पर प्रत्येक कार्य में उत्साह जागता है। यदि किसी व्यक्ति की कोई बड़ी इच्छा पूर्ण हो जाती है या बहुत - सा लाभ मिल जाता है तो उस सफलता से उत्साहित होकर बिना कारण ही वह अन्य काम करने के लिए भी खुशी से तैयार हो जाता है।
आलस्य उत्साह का सबसे बड़ा शत्रु है। जो व्यक्ति आलस्य से भरा होगा उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। आलस्य तो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य को पीछे की ओर खींचता है। आलसी व्यापारी के व्यापार को ठप करने में अधिक समय नहीं लगता। उत्साही व्यक्ति सफलता ऐसा फल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़ निश्चय होता है।
Question 9
हमारे जीवन में उत्साह का विशेष स्थान है। किसी काम को करने के लिए सदा तैयार रहना तथा उस काम को करने में आनंद अनुभव करना उत्साह का प्रमुख लक्षण है। उत्साह कई प्रकार का होता है, परंतु सच्चा उत्साह वही है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है तब जिस सुख को वह अनुभव करता है वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। इसी उत्साह के लिए कवियों ने कहा है कि," साहस से भरी हुई उमंग ही उत्साह है।" जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दुख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सब से उत्पन्न आनंद भी उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है और वह है दान- त्याग का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ रखता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। इसी प्रकार युद्ध क्षेत्र में वीरता दिखाने वाले तथा दया के लिए वीरता दिखाने वाले भी अपने- अपने क्षेत्र में उत्साह का कार्य करने वाले हैं।
उत्साह एक ऐसा मनोभाव है जो किसी कार्य विशेष में तो मनुष्य को प्रेरित करता ही है, साथ ही इस भाव के होने पर अन्य कार्य में भी उसकी शक्ति को बढ़ावा मिलता है। मन में स्फूर्ति होने पर प्रत्येक कार्य में उत्साह जागता है। यदि किसी व्यक्ति की कोई बड़ी इच्छा पूर्ण हो जाती है या बहुत - सा लाभ मिल जाता है तो उस सफलता से उत्साहित होकर बिना कारण ही वह अन्य काम करने के लिए भी खुशी से तैयार हो जाता है।
आलस्य उत्साह का सबसे बड़ा शत्रु है। जो व्यक्ति आलस्य से भरा होगा उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। आलस्य तो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य को पीछे की ओर खींचता है। आलसी व्यापारी के व्यापार को ठप करने में अधिक समय नहीं लगता। उत्साही व्यक्ति सफलता ऐसा फल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़ निश्चय होता है।
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