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पद्यांश पर हिंदी भाषा का क्विज: 07.12.2020

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Question 1

निर्देश: निम्नलिखित काव्यांश को पढकर दिए गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए।
जीवन के इस मोड़ पर, कुछ भी कहा जाता नहीं।
अधरों की ड्योढ़ी पर, शब्दों के पहरे हैं।
हँसने को हँसते हैं, जीने को जीते हैं
साधन-सुभितों में, ज्यादा ही रीते हैं।
बाहर से हरे-भरे, भीतर घाव मगर गहरे
सबके लिए गूँगे हैं, अपने लिए बहरे हैं।
“कुछ भी कहा जाता नहीं” - ऐसा क्यों?

Question 2

निर्देश: निम्नलिखित काव्यांश को पढकर दिए गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए।
जीवन के इस मोड़ पर, कुछ भी कहा जाता नहीं।
अधरों की ड्योढ़ी पर, शब्दों के पहरे हैं।
हँसने को हँसते हैं, जीने को जीते हैं
साधन-सुभितों में, ज्यादा ही रीते हैं।
बाहर से हरे-भरे, भीतर घाव मगर गहरे
सबके लिए गूँगे हैं, अपने लिए बहरे हैं।
कविता की पक्तियों में मुख्यतः बात की गई है

Question 3

निर्देश: निम्नलिखित काव्यांश को पढकर दिए गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए।
जीवन के इस मोड़ पर, कुछ भी कहा जाता नहीं।
अधरों की ड्योढ़ी पर, शब्दों के पहरे हैं।
हँसने को हँसते हैं, जीने को जीते हैं
साधन-सुभितों में, ज्यादा ही रीते हैं।
बाहर से हरे-भरे, भीतर घाव मगर गहरे
सबके लिए गूँगे हैं, अपने लिए बहरे हैं।
"रीते” शब्द में भाव है

Question 4

निर्देश: निम्नलिखित काव्यांश को पढकर दिए गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए।
जीवन के इस मोड़ पर, कुछ भी कहा जाता नहीं।
अधरों की ड्योढ़ी पर, शब्दों के पहरे हैं।
हँसने को हँसते हैं, जीने को जीते हैं
साधन-सुभितों में, ज्यादा ही रीते हैं।
बाहर से हरे-भरे, भीतर घाव मगर गहरे
सबके लिए गूँगे हैं, अपने लिए बहरे हैं।
कविता की पंक्तियों के आधार पर कहा जा सकता है कि

Question 5

निर्देश: निम्नलिखित काव्यांश को पढकर दिए गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए।
जीवन के इस मोड़ पर, कुछ भी कहा जाता नहीं।
अधरों की ड्योढ़ी पर, शब्दों के पहरे हैं।
हँसने को हँसते हैं, जीने को जीते हैं
साधन-सुभितों में, ज्यादा ही रीते हैं।
बाहर से हरे-भरे, भीतर घाव मगर गहरे
सबके लिए गूँगे हैं, अपने लिए बहरे हैं।
"भीतर के भाव” से तात्पर्य है

Question 6

निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का सही/सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
माँ तुम्हारा ॠण बहुत है मैं अंकिचन
किंतु फिर भी कर रहा इतना निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब भी
कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण
माँ मुझे बलिदान का वरदान दे दो
तोड़ता हूँ मोह का बंधन क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो  
और बाएँ हाथ में ध्वज को थमा दो।
सुमन अर्पित चमन अर्पित
नीड़ का कण-कण समर्पित
चाहता हूँ, देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
माँ’ संबोधन किसके लिए है?

Question 7

निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का सही/सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
माँ तुम्हारा ॠण बहुत है मैं अंकिचन
किंतु फिर भी कर रहा इतना निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब भी
कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण
माँ मुझे बलिदान का वरदान दे दो
तोड़ता हूँ मोह का बंधन क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो  
और बाएँ हाथ में ध्वज को थमा दो।
सुमन अर्पित चमन अर्पित
नीड़ का कण-कण समर्पित
चाहता हूँ, देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
कवि निवेदन कर रहा है कि -

Question 8

निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का सही/सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
माँ तुम्हारा ॠण बहुत है मैं अंकिचन
किंतु फिर भी कर रहा इतना निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब भी
कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण
माँ मुझे बलिदान का वरदान दे दो
तोड़ता हूँ मोह का बंधन क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो  
और बाएँ हाथ में ध्वज को थमा दो।
सुमन अर्पित चमन अर्पित
नीड़ का कण-कण समर्पित
चाहता हूँ, देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
‘नीड़ का कण-कण समर्पित’ कथन में ‘नीड़’ का आशय है।

Question 9

निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का सही/सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
माँ तुम्हारा ॠण बहुत है मैं अंकिचन
किंतु फिर भी कर रहा इतना निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब भी
कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण
माँ मुझे बलिदान का वरदान दे दो
तोड़ता हूँ मोह का बंधन क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो  
और बाएँ हाथ में ध्वज को थमा दो।
सुमन अर्पित चमन अर्पित
नीड़ का कण-कण समर्पित
चाहता हूँ, देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
“चाहता हूँ, देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ” – कथन में ‘कुछ और’ से तात्पर्य है कि कुछ ऐसा दिया जाए जो :

Question 10

निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का सही/सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
माँ तुम्हारा ॠण बहुत है मैं अंकिचन
किंतु फिर भी कर रहा इतना निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब भी
कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण
माँ मुझे बलिदान का वरदान दे दो
तोड़ता हूँ मोह का बंधन क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो  
और बाएँ हाथ में ध्वज को थमा दो।
सुमन अर्पित चमन अर्पित
नीड़ का कण-कण समर्पित
चाहता हूँ, देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
‘बलिदान’ शब्द से बना विशेषण है -
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