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गद्यांश पर हिंदी भषा का क्विज:29.01.2021

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Question 1

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सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है तब जिस सुख को  वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दु:ख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है, और वह है  धन त्याग का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। उत्साह आनंद और साहस का मिलाजुला रूप  है। उत्साह में किसी ना किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केंद्रित होता है। वह चाहे कर्म  पर, चाहे कर्म के फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनंद मिलता है। कर्म  भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर आनंद को अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारंभ होने पर ही उसका अनुभव कर लेता है आलस्य सबसे बड़ा शत्रु है जो व्यक्ति मैं  भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़ निश्चय होता है।

गद्यांश से आधार पर सच्चा उत्साह क्या होता है?

Question 2

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सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है तब जिस सुख को  वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दु:ख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है, और वह है  धन त्याग का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। उत्साह आनंद और साहस का मिलाजुला रूप  है। उत्साह में किसी ना किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केंद्रित होता है। वह चाहे कर्म  पर, चाहे कर्म के फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनंद मिलता है। कर्म  भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर आनंद को अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारंभ होने पर ही उसका अनुभव कर लेता है आलस्य सबसे बड़ा शत्रु है जो व्यक्ति मैं  भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़ निश्चय होता है।

दान देने वाला व्यक्ति क्या रखता है?

Question 3

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सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है तब जिस सुख को  वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दु:ख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है, और वह है  धन त्याग का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। उत्साह आनंद और साहस का मिलाजुला रूप  है। उत्साह में किसी ना किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केंद्रित होता है। वह चाहे कर्म  पर, चाहे कर्म के फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनंद मिलता है। कर्म  भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर आनंद को अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारंभ होने पर ही उसका अनुभव कर लेता है आलस्य सबसे बड़ा शत्रु है जो व्यक्ति मैं  भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़ निश्चय होता है।

कर्म भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव कौन कर सकते हैं?

Question 4

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सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है तब जिस सुख को  वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दु:ख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है, और वह है  धन त्याग का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। उत्साह आनंद और साहस का मिलाजुला रूप  है। उत्साह में किसी ना किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केंद्रित होता है। वह चाहे कर्म  पर, चाहे कर्म के फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनंद मिलता है। कर्म  भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर आनंद को अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारंभ होने पर ही उसका अनुभव कर लेता है आलस्य सबसे बड़ा शत्रु है जो व्यक्ति मैं  भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़ निश्चय होता है।

उत्साह का सबसे बड़ा शत्रु कौन है?

Question 5

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सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है तब जिस सुख को  वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दु:ख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है, और वह है  धन त्याग का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। उत्साह आनंद और साहस का मिलाजुला रूप  है। उत्साह में किसी ना किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केंद्रित होता है। वह चाहे कर्म  पर, चाहे कर्म के फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनंद मिलता है। कर्म  भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर आनंद को अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारंभ होने पर ही उसका अनुभव कर लेता है आलस्य सबसे बड़ा शत्रु है जो व्यक्ति मैं  भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़ निश्चय होता है।

सच्चा वीर आनंद का अनुभव कब कर लेता है?

Question 6

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सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है तब जिस सुख को  वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दु:ख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है, और वह है  धन त्याग का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। उत्साह आनंद और साहस का मिलाजुला रूप  है। उत्साह में किसी ना किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केंद्रित होता है। वह चाहे कर्म  पर, चाहे कर्म के फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनंद मिलता है। कर्म  भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर आनंद को अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारंभ होने पर ही उसका अनुभव कर लेता है आलस्य सबसे बड़ा शत्रु है जो व्यक्ति मैं  भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़ निश्चय होता है।

निम्न में से ‘केंद्रित’ और ‘अधिकता’ में किस प्रत्यय का प्रयोग किया गया है?

Question 7

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सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है तब जिस सुख को  वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दु:ख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है, और वह है  धन त्याग का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। उत्साह आनंद और साहस का मिलाजुला रूप  है। उत्साह में किसी ना किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केंद्रित होता है। वह चाहे कर्म  पर, चाहे कर्म के फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनंद मिलता है। कर्म  भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर आनंद को अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारंभ होने पर ही उसका अनुभव कर लेता है आलस्य सबसे बड़ा शत्रु है जो व्यक्ति मैं  भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़ निश्चय होता है।

निम्न में से "संकल्प" शब्द में कौन-सी संधि है?

Question 8

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सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है तब जिस सुख को  वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दु:ख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है, और वह है  धन त्याग का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। उत्साह आनंद और साहस का मिलाजुला रूप  है। उत्साह में किसी ना किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केंद्रित होता है। वह चाहे कर्म  पर, चाहे कर्म के फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनंद मिलता है। कर्म  भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर आनंद को अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारंभ होने पर ही उसका अनुभव कर लेता है आलस्य सबसे बड़ा शत्रु है जो व्यक्ति मैं  भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़ निश्चय होता है।

निम्न में से "अनुभव" का विलोम शब्द क्या है?

Question 9

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सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है तब जिस सुख को  वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दु:ख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है, और वह है  धन त्याग का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। उत्साह आनंद और साहस का मिलाजुला रूप  है। उत्साह में किसी ना किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केंद्रित होता है। वह चाहे कर्म  पर, चाहे कर्म के फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनंद मिलता है। कर्म  भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर आनंद को अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारंभ होने पर ही उसका अनुभव कर लेता है आलस्य सबसे बड़ा शत्रु है जो व्यक्ति मैं  भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़ निश्चय होता है।

निम्नलिखित में से कौन-सा शब्द ‘आनंद’ का पर्यायवाची शब्द है?
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