साहित्य क्या है ?
'साहित्य' शब्द की व्युत्पत्ति 'सहित' शब्द से हुई है। सहित शब्द का अर्थ है साथ होने का भाव। मतलब यह कि जहाँ शब्द और अर्थ सहित भाव से आए, वही साहित्य है।
इसमें कल्याण का भाव समाहित होता है। कल्याण के इसी भाव को लक्षित करके आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा- “निखिल विश्व के साथ एकत्व की साधना ही साहित्य है"
आचार्य शुक्ल ने 'चिंतामणि भाग-एक' के 'कविता क्या है' नामक निबंध में इस प्रकार कहा है- “शेष सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक संबंध की रक्षा और निर्वाह ही कविता है।" वे इसकी व्याख्या करते हुए कहते हैं कि कविता हमें 'स्व' के संकीर्ण दायरे से बाहर निकालकर लोकहृदय में लीन होने की दशा में ले जाती है।
साहित्य और कविता:
कविता साहित्य की लोकप्रिय और पारंपरिक विधा है। कविता को परिभाषित करते हुए विलियम वर्ड्सवर्थ ने कहा है- “Poetry is nothing but spontaneous flow of emotions.” मतलब यह कि कविता और कुछ नहीं, भावों का अविरल प्रवाह है।
शैली भी कहते हैं- "Our Sweetest melody has been sung at the saddest moment." अर्थात जीवन के मधुरतम गीतों की रचना उदासी भरे क्षणों में होती है।
पंत ने भी भावना और कविता के अन्तर्सम्बन्धों को उद्घाटित करते हुए कहा है -
“वियोगी होगा पहला कवि,
आह से उपजा होगा गान;
उमड़ कर आँखों से चुपचाप,
वही होगी कविता अनजान।"
निश्चय ही कविता प्रबल भावावेग पर आधारित होती है, लेकिन यह कविता की एकमात्र विशेषता नहीं। यह कम-से-कम शब्दों में मानव जीवन के प्रभावी अंकन का एकमात्र जरिया है।
आनंदवर्द्धन ने इसकी विशेषता की ओर संकेत करते हुए कहा कि कविता में जितना महत्वपूर्ण अभिव्यक्त है, उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण अनभिव्यक्त। यह मानव की अनुभूतियों का समग्रता में चित्रण है।
स्पष्ट है कि भावात्मकता, अनुभूति और संक्षिप्त कविता की महत्वपूर्ण विशेषताएँ है। यात्मकता कविता का अनिवार्य गुण है।
कभी यह लय छंदों के बंधन पर आधारित होता है, कभी तुक पर और हमेशा भाव पर इसीलिए कविता को संक्षिप्त परिभाषा हम इस रूप में दे सकते हैं "कविता प्रबल भावावेग पर आधारित वैसी रचना है जो लयात्मकता के गुणों से अनिवार्यतः सम्पन्न हो।"
साहित्य की प्रासंगिकता:
साहित्य वह लोक-मंगलकारी रचना है जिसमें शब्द और अर्थ साथ-साथ आकर रचनाकार के भावों,
विचारों और आदर्शों को समाज और पाठकों तक पहुंचाने का काम करते हैं।
उदाहरण के रूप में तुलसी के मानस को ले सकते हैं जो अपनी रचना के 400 वर्ष बाद भी प्रासंगिक है। साहित्य उन मूल्यों, विचारों और आदर्शों को विरासत को हमें सौंपता है जो पूर्व की पीढ़ियों के द्वारा छोड़े गये थे। स्पष्ट है कि साहित्य हमारे व्यक्तित्व निर्माण में भी सहायक है।
इसी दिशा में संकेत रामवृक्ष बेनीपुरी के द्वारा 'गेहूँ और गुलाब' में दिया गया है। इसमें वे लिखते हैं कि "जहाँ गेहूँ हमारी भौतिक भूख को शांत करता है वहीं गुलाब हमारी सौंदर्य चेतना का परिष्कार करता हुआ हमारी आत्मिक भूख को शांत करता है।"
स्पष्ट है कि साहित्य की इस संवेदनशीलता का आज कहीं अधिक महत्व है। कारण यह है कि भौतिक उपभोक्तावादी संस्कृति के बढ़ते हुए वर्चस्व के कारण मानवीय संवेदनाओं का निरंतर लोप होता जा रहा है और स्थिति इतनी विषम हो गयी है कि -
"आदमी में इस कदर विष भर गया है। कि विषधरों का वंश सारा डर गया है।
कल सुनोगे, राह चलते आदमी के काटने से
साँप कोई मर गया है।"
यहाँ वह पृष्ठभूमि है जिसमें नागार्जुन को लिखना पड़ता है -
"रोता हूँ, लिखता जाता हूँ अपने कवि को बेकाबू पाता हूँ"
स्पष्ट है कि यह कवि की व्यापक संवेदना है जो उन्हें रोने के लिए भी विवश करती है और लिखने के लिए भी। इसी संवेदना के कारण गुप्त जी साहित्य को मनोरंजन के उद्देश्य तक सीमित कर रखने के लिए तैयार नहीं है।
"केवल मनोरंजन ही नहीं, कवि कर्म का उद्देश्य होना चाहिए उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए"
यह साहित्य की सामाजिक सोद्देश्यता है जो उसे प्रासंगिक बनाए रखता है। इतना ही नहीं, साहित्य उस समय, समाज, संस्कृति और परंपरा तक हमारी पहुँच को भी सुनिश्चित करता है जहाँ तक हमारी भौतिक पहुँच संभव नहीं रह जाती है। इसका संकेत “जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि" के जरिये दिया गया है। आशय यह है कि जहाँ तक सूर्य की किरणें नहीं पहुँच पाती, वहाँ तक कवि की कल्पना शक्ति की पहुँच होती है।
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हमें आशा है कि आप सभी 'साहित्य : सामान्य परिचय' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। अगली Mini Series के लिए आप अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं।
Thank you
Team BYJU'S Exam Prep.
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