Study Notes शुक्ल एवं शुक्लोत्तर युग के निबंध

By Mohit Choudhary|Updated : August 31st, 2022

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है हिंदी निबंध। इसे 4 युगों भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग, शुक्ल युग एवं शुक्लोत्तर युग  में बांटा गया है।  इस विषय की की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए हिंदी निबंध के आवश्यक नोट्स कई भागों में उपलब्ध कराए जाएंगे। इसमें से शुक्ल एवं शुक्लोत्तर युग के निबंध से सम्बंधित नोट्स इस लेख मे साझा किये जा रहे हैं। जो छात्र UGC NET 2022 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे।   

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शुक्ल युग के प्रमुख निबन्धों की समीक्षा

रामचन्द्र शुक्ल - कविता क्या है?

  • 'कविता क्या है' शुक्ल जी का आलोचनात्मक निबन्ध है। इस निबन्ध का प्रारम्भ शुक्ल जी ने समास शैली/सूत्र शैली से किया है- "कविता वह साधन है, जिसके द्वारा शेष सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक सम्बन्ध की रक्षा और निर्वाह होता है।" आगे की पंक्तियों में वे राग की व्याख्या करते हैं। 
  • दूसरे अनुच्छेद की प्रारम्भिक पंक्तियों में कविता का कार्य स्पष्ट करते हुए कहते हैं- “रागों का वेगस्वरूप मनोशक्तियों का सृष्टि के साथ उचित सामंजस्य स्थापित करके कविता मानव जीवन के कार्यत्व की अनुभूति उत्पन्न करने का प्रयास करती है। अन्यथा मनुष्य के जड़ हो जाने में कोई सन्देह नहीं।”
  • उदाहरण शैली का एक नमूना देते हुए उन्होंने बताया है कि एक साधारण सा उदाहरण लेते हैं- 'तुमने उससे विग्रह किया' यह बहुत ही साधारण वाक्य है, लेकिन 'तुमने उसका हाथ पकड़ा' यह एक विशेष अर्थगर्भित तथा काव्योचित वाक्य है। 
  • शुक्ल जी के निबन्ध 'कविता क्या है?' के अनुसार कविता का पर्याय काव्य है। कविता का लक्ष्य सृष्टि के नाना रूपों के साथ मनुष्य की भी रागात्मक प्रवृत्ति का सामंजस्य स्थापित करना है। कविता की प्रेरणा से कार्य में प्रवृत्ति बढ़ जाती है। मनोरंजन करना कविता का महान गुण माना गया है। 
  • कविता के द्वारा चरित्र चित्रण के माध्यम से सुगमता शिक्षा दी जा सकती है। कविता का कार्य भक्ति, श्रद्धा, दया, करुणा, क्रोध और प्रेम आदि मनोवेगों को तीव्र तथा परिवर्तित करना है तथा सृष्टि की वस्तुओं और व्यापारों से उनका उचित तथा उपयुक्त सम्बन्ध स्थापित करना है। कविता मनुष्य के हृदय को उन्नत व उदात्त बनाती है। य

शुक्ल युग के प्रमुख निबंधकार- 

  1. आचार्य रामचंद्र शुक्ल 
  2. माखनलाल चतुर्वेदी
  3. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी 
  4. शांतिप्रिय द्विवेदी 
  5.  शिवपूजन सहाय 
  6. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’
  7. रघुवीर सिंह सहाय 

शुक्लोत्तर युग के प्रमुख निबन्धों की समीक्षा

हजारीप्रसाद द्विवेदी - नाखून क्यों बढ़ते हैं?

  • 'नाखून क्यों बढ़ते हैं' हजारीप्रसाद द्विवेदी का प्रसिद्ध निबन्ध है। नाखून मनुष्य की आदिम हिंसक मनोवृत्ति का परिचायक है। नाखून बार-बार बढ़ते हैं और मनुष्य उन्हें बार-बार काट देता है तथा हिंसा से मुक्त होने और सभ्य बनने का प्रयत्न करता है। 
  • मानव के जीवन में आए दिन अनेक सामाजिक बुराइयों का सामना होता है, सध्य समाज इसको नियन्त्रित करने का प्रयत्न करता है, साधु-सन्त अपने उपदेशों द्वारा मानव को इन बुराइयों से दूर रहने के लिए सचेत करते रहते हैं। सरकारें भी इन बुराइयों को रोकने के लिए कानून बनाती हैं। 
  • उपर्युक्त सभी प्रयत्न एक तरह से नाखून काटने के समान हैं। बुराई को जड़ से खत्म करना तो सम्भव नहीं, लेकिन जो इनमें लिप्त रहते हैं, वे समाज में अपवाद माने जाते हैं।
  • द्विवेदी जी ने इस आलोचनात्मक निबन्ध में स्पष्ट किया है नाखूनों का बढ़ना मनुष्य की उस अन्ध सहजावृत्ति का परिणाम है, जो उसके जीवन में सफलता ले आना चाहती है तथा नाखूनों को काट देना स्व-निर्धारित आत्म बन्धन है, जो उसे चरितार्थ की ओर ले जाती है। 
  • द्विवेदी जी ने इस निबन्ध के माध्यम से नाखूनों को प्रतीक बनाकर व्यंग्य के माध्यम से आज के तथाकथित बाहर से सभ्य दिखने वाले, किन्तु अन्दर से बर्बर समाज पर कटाक्ष किया है।

विद्यानिवास मिश्र - मेरे राम का मुकुट भीग रहा है 

  • डॉ. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों का प्रतिपाद्य विषय गरिमापूर्ण है। इन्होंने भारतीय संस्कृति, प्रकृति साहित्य तथा लोक परम्परा के आयामों का उद्घाटन किया है। 'मेरे राम का मुकुट भीग रहा है' विद्यानिवास मिश्र द्वारा रचित विचारात्मक निबन्ध है। 
  • प्रस्तुत निबन्ध में लेखक के गहन विचारों का परिणाम दिखाई देता है। निबन्ध में लेखक अपने कुछ विचार प्रकट कर तथा अपने कुछ प्रश्नों का उत्तर खोजता है। यह विचार और सभी प्रश्न लेखक के जीवन की एक घटना से निकलते हैं।
  • लेखक को अपनी दादी का एक गीत याद आता है, जिसमें भगवान् राम के वनवास चले जाने पर अयोध्यावासियों की चिन्ता प्रकट की गई थी। 
  • लेखक भारतीय समाज में फैले पीढ़ियों के अन्तर पर भी विचार करता है। जहाँ एक ओर पुरानी पीढ़ी, नई पीढ़ी की क्षमताओं पर विश्वास नहीं करती, अपितु उनकी क्षमताओं की उपेक्षा करती है, लेकिन दूसरी ओर नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को रूढ़िवादी समझती है। 

कुबेरनाथ राय - उत्तराफाल्गुनी के आस पास

  • कुबेरनाथ राय हिन्दी ललित परम्परा के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर, सांस्कृतिक निबन्धकार और भारतीय आर्ष चिन्तन के गन्धमादन थे। उनका 'उत्तर फाल्गुनी के आस-पास' निबन्ध ज्योतिष शास्त्र से सम्बन्धित है।
  • वर्षा ऋतु का अन्तिम नक्षत्र उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र होता है। लेखक ने उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र को व्यक्ति के जीवनकाल के परिप्रेक्ष्य में देखा है। उन्होंने बताया कि 25वें वर्ष तक व्यक्ति मस्त रहता है। प्रकृति की खूबसूरती के दर्शन करता है। 25 से 30 वर्ष की अवस्था तक वह काम, क्रोध तथा मोह में लीन रहता है।
  • लेखक को सृष्टि के सृजक ब्रह्मा को बूढ़ा मानने में, आपत्ति है। उनका कहना है कि जो सम्पूर्ण विश्व को रचने वाला है वह बूढ़ा कैसे हो सकता है, क्योंकि ब्रह्मा की मूर्ति सभी जगह श्वेत बालों सहित बनी होती है। एक स्थान पर ब्रह्मा जी की युवा मूर्ति को देखकर उन्हें बहुत प्रसन्नता होती है। लेखक ने 40 वर्ष के बाद की अवस्था को उत्तराफाल्गुनी कहा है तथा इसको जीवन का अन्तिम पड़ाव माना है।

विवेकी राय - उठ जाग मुसाफिर

  • विवेकी राय हिन्दी ललित निबन्ध परम्परा के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। 'उठ जाग मुसाफिर' इनका बारहवाँ निबन्ध संग्रह है। विवेकी राय द्वारा रचित निबन्ध 'उठ जाग मुसाफिर' मास्टर साहब से मिलने जाने की घटना से शुरू होता है। वहाँ जाते समय वह कल्पना कर रहा था कि मास्टर साहब हमेशा की तरह तन-मन से पूर्ण स्वस्थ होंगे तथा पूर्ववत् हँसी खुशी मिलेंगे, लेकिन निबन्ध के अन्त तक आते-आते, सन्दर्भों व तर्कों से गुजरते हुए वे क्रमशः वैचारिक होते जाते हैं।
  • 'उठ जाग मुसाफिर' निबन्ध को पढ़ने से ऐसा लगता है मानो अपने ही गाँव का कोई बड़ा-बुजुर्ग कोई पुरानी या नई पीढ़ी के किसी पढ़े-लिखे युवक को अपनी स्मृतियों की दुनिया की सैर करा रहा है, तो कभी लगता है कि 'कविर्मनीषी परिभूस्वयंभू' को चरितार्थ करता हुआ कोई लेखक आधुनिक गाँवों के जीवन की संहिता का दर्शन कर उनके मन्त्रों का गान कर रहा हो। अन्तर इतना सा है कि यह मन्त्र आदिम मन के मुग्ध-गायन जैसा नहीं जैसा कि वैदिक ऋचाओं के सम्बन्ध में माना जाता है।

नामवर सिंह - संस्कृति और सौंदर्य

  • नामवर सिंह ने 'संस्कृति और सौन्दर्य' निबन्ध में द्विवेदी जी के संस्कृति एवं सौन्दर्य सम्बन्धी दृष्टिकोण की व्यापकता और प्रासंगिकता का उद्घाटन किया है। इस लेख में नामवर सिंह ने दो बातों- संस्कृति और सौन्दर्य पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया है। लेखक ने समकालीन सन्दर्भों में संस्कृति के प्रति आसक्ति या मोह को जड़ता बताया है।
  • नामवर सिंह ने द्विवेदी के सात्विक सौन्दर्य बोध को 'निराला' के सौन्दर्य बोध से जोड़ते हुए कहा है— “श्याम तन भर बँधा यौवन।” वे प्रगतिशील सौन्दर्य चेतना का आधुनिक क्रम निर्धारित करते हैं।
  • नामवर सिंह जी ने द्विवेदी जी की लालित्य मीमांसा के तीन सूत्रों की चर्चा की है। पहले सूत्र के अनुसार द्विवेदी जी सौन्दर्य को सौन्दर्य न कहकर 'लालित्य' कहना चाहते थे। 
  • दूसरे सूत्र के अनुसार द्विवेदी जी की दृष्टि में कला और सौन्दर्य की सृष्टि विलास मात्र नहीं, बल्कि बन्धनों के विरुद्ध विद्रोह है। 
  • तीसरे सूत्र की चर्चा करते हुए नामवर सिंह जी लिखते हैं- "द्विवेदी जी की 'लालित्य मीमांसा' का तीसरा सूत्र है कि सौन्दर्य एक सृजना है मनुष्य की क्षमता का परिणाम है।"
  • अन्त में नामवर सिंह जी द्विवेदी जी के सौन्दर्य सम्बन्धी चिन्तन का सार प्रस्तुत करते हुए कहते हैं— “जीवन का समग्र विकास ही सौन्दर्य है। यह सौन्दर्य वस्तुतः एक सृजन-व्यापार है। इस सृजन की क्षमता मनुष्य में अन्तर्निहित है। वह सौन्दर्य-सृजन की क्षमता के कारण ही मनुष्य है। इस सृजन व्यापार का अर्थ है बन्धनों से विद्रोह। इस प्रकार सौन्दर्य विद्रोह है— मानव मुक्ति का प्रयास है।"

हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'शुक्ल एवं शुक्लोत्तर युग के निबंध' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

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