Study Notes On आलोचना: उद्भव एवं विकास भाग २

By Mohit Choudhary|Updated : September 1st, 2022

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है हिंदी आलोचना। इसे 4 युगों भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग, शुक्ल युग एवं शुक्लोत्तर युग  में बांटा गया है।  इस विषय की की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए हिंदी निबंध के आवश्यक नोट्स कई भागों में उपलब्ध कराए जाएंगे। इसमें से शुक्ल एवं शुक्लोत्तर युग के आलोचना से सम्बंधित नोट्स इस लेख मे साझा किये जा रहे हैं। जो छात्र UGC NET 2022 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे।

हमारी वर्कशॉप में भी शामिल हों: जानिए यूजीसी नेट हिंदी साहित्य इकाईवार तैयारी की रणनीति

               

शुक्ल युग : विशुद्ध आलोचना 

  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की प्रथम सैद्धान्तिक आलोचना 'काव्य में रहस्यवाद' (1929) निबंध को माना जाता है।
  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की प्रमुख आलोचनात्मक कृतियाँ निम्न हैं (1) गोस्वामी तुलसीदास (1923), (2) जायसी ग्रन्थावली (1924), (3) भ्रमरगीत सार (1925), (4) रस मीमांसा (1949) ।
  • रस मीमांसा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की सैद्धान्तिक आलोचना है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आलोचना के क्षेत्र में 'विरुद्धों का सामंजस्य सिद्धांत' प्रवर्तन किया।
  • आचार्य शुक्ल आनन्द की अभिव्यक्ति के आधार पर काव्य के दो विभाग करते है - 

(1) आनंद की साधनावस्था या प्रयत्न पक्ष को लेकर चलने वाले। जैसे रामचरित मानस, पद्मावत (उत्तरार्द्ध), हम्मीर रासो, पृथ्वीराज रासो, छत्र प्रकाश इत्यादि प्रबन्ध काव्य ।

(2) आनंद की सिद्धावस्था या उपभोग-पक्ष को लेकर चलने वाले। जैसे सूरसागर, कृष्ण भक्त कवियों की पदावली, बिहारी सतसई, रीतिकाल के कवियों के फुटकर शृंगारी पद्म, रास पंचाध्यायी इत्यादि वर्णनात्मक काव्य।

  •  जयशंकर प्रसाद ने 'काव्य और कला तथा अन्य निबंध' में कुछ आलोचनात्मक निबंध लिखे हैं।
  • जयशंकर प्रसाद ने लिखा है, "काव्य आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति है. आत्मा की मनन शक्ति की वह असाधारण अवस्था जो श्रेय सत्य को उसके मूल
  • चारुत्व में सहसा ग्रहण कर लेती है, काव्य में संकल्पनात्मक अनुभूति कही जा सकती है।" 
  • सुमित्रानन्दन पंत प्रथम छायावादी कवि हैं जिन्होंने छायावादी कविता के बचाव में आलोचना लिखी। सुमित्रानन्दन पंत के 'पल्लव' के प्रवेश' को छायावाद का घोषणा पत्र माना जाता है।
  • पंत के अनुसार, "कविता हमारे परिपूर्ण क्षणों की वाणी है।"
  • पंत की अन्य आलोचना (1) गद्य पद्य (1953), (2) शिल्प और दर्शन (1961) तथा (3) छायावाद : पुनर्मूल्यांकन (1965) है।
  • सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' ने लिखा है, "कविता परिवेश की पुकार है। " सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' की प्रमुख आलोचनात्मक कृतियाँ हैं- (1) रवीन्द्र कविता कानन, (2) पंत और पल्लव (1928), (3) प्रबन्ध पद्य । 
  • 'निराला ने 'कवित्त' को हिन्दी का जातीय छन्द कहा है।

शुक्लोत्तर युग

  • आचार्य शांतिप्रिय द्विवेदी महत्वपूर्ण प्रभाववादी समीक्षक हैं। शांतिप्रिय द्विवेदी ने गांधी और रविंद्र की मानवतावादी दृष्टि को 'छायावाद' की केन्द्रीय चेतना माना है। 
  • शांतिप्रिय द्विवेदी की प्रमुख समीक्षा कृति निम्न है- (1) सामयिकी (2) हमारे साहित्य निर्माता, (3) संचारिणी।
  • आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी को समन्वयशील, स्वच्छन्दतावादी एवं सौष्ठववादों आलोचक माना जाता है।
  • नन्ददुलारे वाजपेयी ने सर्वप्रथम छायावाद को 'मानवीय और सांस्कृतिक' प्रेरणा के रूप में व्याख्यायित किया।
  • नन्ददुलारें वाजपेयी की प्रमुख आलोचनात्मक कृतियाँ निम्नांकित हैं-  

(1) हिन्दी साहित्य : बीसवीं शताब्दी (1942), (2) जयशंकर प्रसाद (1940), (3) प्रेमचंद, (4) आधुनिक साहित्य (1950), (5) महाकवि सूरदास (1952), (6) महाकवि निराला (1965), (7) नयी कविता (1973), (8) कवि सुमित्रानंदन पंत (1976), (9) रस सिद्धान्त (1977), (10) साहित्य का आधुनिक युग (1978), (11) आधुनिक साहित्य : सृजन और समीक्षा (1978), (12) रीति और शैली (1979), (13) नया साहित्य नये प्रश्न । 

  • डॉ० नगेन्द्र को रसवादी आलोचक माना जाता है। 
  • इनकी आलोचना में भारतीय और पाश्चात्य का समन्वय मिलता है।
  • डॉ० नगेन्द्र की प्रमुख आलोचनात्मक कृतियाँ निम्नलिखित हैं- 

(1) सुमित्रानन्दन पंत, (2) साकेत : एक अध्ययन (3) देव और उनकी कविता, (4) रीतिकाव्य की भूमिका, (5) राम की शक्तिपूजा : निराला की कालजयी कृति, (6) हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ, (7) शैली विज्ञान, (8) आधुनिक हिन्दी कविता की मुख्य प्रवृत्तियाँ (9) भारतीय समीक्षा और आचार्य शुक्ल की काव्य दृष्टि, (10) रस सिद्धान्त, (11) नयी समीक्षा : नये सन्दर्भ, (12) कामायनी के अध्ययन की समस्याएँ, (13) आधुनिक हिन्दी नाटक, (14) भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका, (15) सियारामशरण गुप्त, (16) भारतीय सौन्दर्यशास्त्र की भूमिका, (17) काव्य बिम्ब, (18) साहित्य का समाजशास्त्र ।

  • आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी को चिन्मुखी मानवता के अन्वेषक रूप में जाना जाता है।
  • हजारी प्रसाद द्विवेदी ऐतिहासिक-सांस्कृतिक चेतना सम्पन्न मानवतावादी आलोचक हैं। 
  • हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख आलोचनात्मक रचनाएँ निम्न हैं-

 (1) सूर साहित्य (1930), (2) हिन्दी साहित्य की भूमिका (1940), (3) कबोर (1941), (4) हिन्दी साहित्य का आदिकाल (1952), (5) सहजा (1963), (6) कालिदास की लालित्य योजना (1965), (7) मध्यकालीन का स्वरूप (1970) | 

  • हिन्दी आलोचना में इलाचन्द्र जोशी को मनोविश्लेषणवादी आलोचना का जनक माना जाता है।

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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'आलोचना: उद्भव एवं विकास' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

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