Study Notes On आलोचना: उद्भव एवं विकास भाग १

By Mohit Choudhary|Updated : September 1st, 2022

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है हिंदी आलोचना। इसे 4 युगों भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग, शुक्ल युग एवं शुक्लोत्तर युग  में बांटा गया है।  इस विषय की की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए हिंदी निबंध के आवश्यक नोट्स कई भागों में उपलब्ध कराए जाएंगे। इसमें से भारतेन्दु एवं द्विवेदी युग के आलोचना से सम्बंधित नोट्स इस लेख मे साझा किये जा रहे हैं। जो छात्र UGC NET 2022 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे।         

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हिन्दी आलोचना का इतिहास रीतिकाल से थोड़ा पहले प्रारम्भ होता है। ऐसा माना जाता है कि 'हित तरंगिणी' के लेखक कृपाराम हिन्दी के पहले काव्यशास्त्री थे, लेकिन हिन्दी में 'काव्य रीति' का सम्यक् समावेश सबसे पहले आचार्य केशव ने ही किया, जिसका अनुकरण परवर्ती रीतिकालीन आचार्यों और लक्षणकारों ने किया। हिन्दी में वार्ता-ग्रन्थों, भक्तमालों और उनके टीका-ग्रन्थों के रूप में आलोचना की जो प्राचीन परम्परा मिलती है, वह निःसन्देह हिन्दी आलोचना का प्रवेश द्वार है, लेकिन आचार्यत्व और कवित्व के एकीकरण के इस दौर में आलोचना लक्षण, उदाहरण और टीकाओं तक ही सीमित थी।

हिन्दी आलोचना के विकास को हम इस प्रकार देख सकते हैं। 

  1. भारतेन्दु युग 2. द्विवेदी युग 3. शुक्ल युग 4. शुक्लोत्तर युग

भारतेन्दु युग

  • भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को आधुनिक हिन्दी का प्रथम आलोचक माना जाता है। आधुनिक हिन्दी का प्रथम सैद्धान्तिक आलोचना भारतेन्दु कृत 'नाटक' (1883) को माना जाता है। 
  • डॉ० बच्चन सिंह ने लिखा है, "भट्ट जी हिन्दी के पहले आलोचक हैं और 'संयोगिता स्वयंवर' पर लिखी गयी उनकी आलोचना पहली आलोचना (1886) है।"
  • बालकृष्ण भट्ट ने सन् 1886 में 'हिन्दी प्रदीप' में लाला श्रीनिवासदास कृत 'संयोगिता स्वयंवर' नाटक का 'सच्ची समालोचना' शीर्षक से आलोचना की।
  • बालकृष्ण भट्ट को आधुनिक हिन्दी में व्यावहारिक आलोचना का जनक माना जाता बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' ने 'आनन्द कादम्बिनी' में सन् 1885 में बाबू गंगाधर सिंह कृत 'बंग विजेता' नामक बांग्ला उपन्यास के हिन्दी अनुवाद की आलोचना की ।
  • सन् 1886 में बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' ने लाला श्रीनिवासदास कृत 'संयोगिता स्वयंवर' की 'आनन्द कादम्बिनी' में आलोचना की।
  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है, "समालोचना का सूत्रपात हिन्दी में एक प्रकार से भट्ट जी और चौधरी साहब ने ही किया।"

द्विवेदी युग

  • आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को हिन्दी का प्रथम लोकवादी आचार्य माना जाता है। 
  • आधुनिक हिन्दी आलोचना में 'तुलनात्मक आलोचना' का जनक पद्म सिंह शर्मा को माना जाता है।
  • सर्वप्रथम सन् 1907 ई० की 'सरस्वती' में पद्मसिंह शर्मा ने 'बिहारी' और फारसी कवि 'सादी' की तुलनात्मक आलोचना की।
  • सन् 1910 में मिश्र बन्धुओं ने प्रसिद्ध आलोचना ग्रन्थ 'हिन्दी नवरत्न' की रचना की।
  • हिन्दी नवरत्न' में निम्नलिखित कवियों को स्थान दिया गया है- (1) गोस्वामी तुलसीदास, (2) महात्मा सूरदास, (3) महाकवि देवदत्त 'देव', (4) महाकवि बिहारीलाल, (5) त्रिपाठी बन्धु-भूषण और मतिराम, (6) महाकवि केशवदास (7) महात्मा कबीरदास, (8) महाकवि चन्दबरदाई और, (9) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
  • 'हिन्दी नवरत्न' में मिश्र बन्धुओं ने सर्वप्रथम 'देव बड़े कि बिहारी' विवाद को प्रारम्भ किया। इन्होंने देव को श्रेष्ठ बताते हुए तुलसी और सूर के समकक्ष स्थान दिया।
  • 'देव बड़े कि बिहारी' विवाद में भाग लेने वाले आलोचक और कृतियाँ निम्न हैं- 

आलोचक 

आलोचना

बड़े कवि

पद्मसिंह शर्मा

बिहारी सतसई : तुलनात्मक अध्ययन (1918) 

बिहारी

कृष्ण बिहारी मिश्र

देव और बिहारी

देव

लाला भगवानदीन

बिहारी और देव 

बिहारी

  • जगन्नाथदास 'रत्नाकर' ने पोप के 'एस्से ऑन क्रिटिसिज्म' का पद्यात्मक अनुवाद 'समलोचनादर्श' शीर्षक से किया। 
  • हिन्दी में शोध एवं अनुसंधान परक समीक्षा का विकास 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ के प्रकाशन से माना जाता है। सन् 1921 ई० में सर्वप्रथम काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में परास्नातक (एम०ए०) के पाठ्यक्रम में हिन्दी को स्थान दिया गया।
  • सन् 1921 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रथम बार हिन्दी अध्यापक के रूप में बाबू श्यामसुन्दर दास की नियुक्ति हिन्दी के अध्ययन और विकास को प्रेरणा देने के उद्देश्य से की गई। 
  • डॉ० श्यामसुन्दरदास के मार्ग निर्देशन में पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल ने हिन्दी का प्रथम शोध 'हिन्दी काव्य में निर्गुण सम्प्रदाय' शीर्षक से लिखा।
  • हिन्दी में एकेडमिक आलोचना (अध्यापकीय आलोचना) का सूत्रपात बाबू श्यामसुन्दर दास ने किया। 
  • श्यामसुन्दरदास की प्रमुख आलोचनात्मक रचनाएँ निम्न हैं-(1) साहित्यालोचन (1922), (2) भाषा विज्ञान (1923), (3) हिन्दी भाषा का विकास (1924)  (4) हिन्दी भाषा और साहित्य (1930), (5) रूपक रहस्य (1931). (6) भाषा रहस्य (1935) 

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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'आलोचना: उद्भव एवं विकास' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

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