Study Notes On आलोचना के प्रकार

By Mohit Choudhary|Updated : September 1st, 2022

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है हिंदी आलोचना। इसे 4 युगों भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग, शुक्ल युग एवं शुक्लोत्तर युग  में बांटा गया है।  इस विषय की की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए हिंदी निबंध के आवश्यक नोट्स कई भागों में उपलब्ध कराए जाएंगे। इसमें से आलोचना के प्रकार से सम्बंधित नोट्स इस लेख मे साझा किये जा रहे हैं। जो छात्र UGC NET 2022 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे।

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आलोचना शब्द से अभिप्राय

  • आलोचना शब्द 'लुच' धातु से बना है। 'लुच' का अर्थ है देखना, इसलिए किसी वस्तु या कृति की सम्यक व्याख्या, उसका मूल्यांकन आदि करना ही आलोचना है। संस्कृत में प्रचलित 'टीका व्याख्या' और काव्य-सिद्धान्त निरूपण के लिए भी आलोचना शब्द का प्रयोग कर लिया जाता है। 
  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, आधुनिक आलोचना, संस्कृत के काव्य सिद्धान्त निरूपण से स्वतन्त्र है। आलोचना का कार्य है किसी साहित्यिक रचना को अच्छी तरह परीक्षा करके उसके रूप, गुण और अर्थव्यवस्था का निर्धारण करना।

आलोचना के सन्दर्भ में भारतीय विद्वानों के मत

  • डॉ. गुलाबराय का अभिमत है, “आलोचना का मूल उद्देश्य कवि की कृति का सभी दृष्टिकोणों से आस्वाद कर पाठकों को उस प्रकार के आस्वाद में सहायता देना तथा उनकी रुचि को परिमार्जित करना एवं साहित्य की गतिविधि निर्धारित करने में योगदान देना है।"
  • डॉ. श्यामसुन्दर दास का कथन है कि, "साहित्य क्षेत्र में ग्रन्थ को पढ़कर उसके गुणों और दोषों का विवेचन करना और उसके सम्बन्ध में अपना मत प्रकट करना आलोचना कहलाता है।"

आलोचना के प्रकार

आलोचना करते समय जिन मान्यताओं और पद्धतियों को स्वीकार किया जाता है, उनके अनुसार आलोचना के कई प्रकार विकसित हो जाते हैं। मुख्यतः आलोचना के दो प्रकार हैं-

सैद्धान्तिक आलोचना:

  • सैद्धान्तिक आलोचना में साहित्य के सिद्धांतों पर विचार होता है। ये सिद्धांत शास्त्रीय भी हो सकते हैं और ऐतिहासिक भी। इस पद्धति में आलोचक शास्त्र के विषय में सिद्धांत स्थापित करता है, उसमें साहित्य के मानदण्ड विषयक चिंतन होता है। 
  • साहित्य के मूल को पहचान कर उसमें सम्बन्ध रखने वाले सिद्धांत स्थिर किए जाते हैं।

व्यावहारिक आलोचना:

  • जब सिद्धांतों के आधार पर साहित्य की समीक्षा की जाए, तो उसे व्यावहारिक आलोचना का नाम दिया जाता है। व्यावहारिक आलोचना निम्न प्रकार की हो सकती है-

१. व्याख्यात्मक आलोचना गूढ़ गम्भीर साहित्य रचना के विषय उसकी भाषा, शिल्प को सरल तथा सुबोध भाषा में स्पष्ट करना ही व्याख्यात्मक आलोचना है। इस आलोचना में आलोचक की दृष्टि रचना पर रहती है और उसी के अनुसार वह अपना विवेचनापूर्ण निर्णय भी व्यक्त करता है। इस आलोचना में रचना का कथ्य महत्त्वपूर्ण होता है।

२. जीवन चरितात्मक आलोचना किसी भी रचनाकार का साहित्य किसी-न-किसी रूप और मात्रा में उसके अपने जीवन एवं घटनाओं से प्रभावित होता है। इस आलोचना में किसी रचनाकार की कृतियों का, उसके जीवन और विशिष्ट घटनाओं की पृष्ठभूमि का मूल्यांकन किया जाता है।

३. ऐतिहासिक आलोचना के अन्तर्गत वे रचनाएँ आती हैं, जिनमें किसी रचना का मूल्यांकन रचनाकार की जाति, वर्ग और उसके समाज के आधार पर किया जाता है। इस आलोचना पद्धति का आरम्भ सिद्ध इतिहासकार 'तैन' ने किया था। यह हिन्दी आलोचना की अमूल्य निधि है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने कबीर और नाथपन्थियों का मूल्यांकन इसी आलोचना पद्धति से किया है।

४. रचनात्मक आलोचना वह कहलाती है, जिसमे आलोचक किसी रचना या साहित्यकार के सम्पूर्ण साहित्य को आधार बनाकर आलोचना तो करता है, किन्तु वह आलोचना उस रचना या साहित्य की मात्र व्याख्या या स्पष्टीकरण नहीं होती, बल्कि वह आलोचना पाठकों को स्वतन्त्र रचना का आनन्द प्रदान करती है।

५. प्रभाववादी आलोचना में आलोचक कृति को भूलकर उसके द्वारा उत्पन्न प्रभाव की मार्मिक आलोचना करने में तत्पर रहता है।

६. तुलनात्मक आलोचना जब किसी रचना या साहित्य की तुलना किसी अन्य रचनाकार या किसी दूसरी भाषा के साहित्य से की जाए तो यह तुलनात्मक आलोचना होती है। इस आलोचना का जनक पदमसिंह शर्मा को माना जाता है। आलोचनाओं के उपरोक्त भेदों के अतिरिक्त भी कई प्रकार की आलोचना हो सकती है।

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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'आलोचना के प्रकार' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

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