Day 14: Study Notes प्रेमचंद पूर्व उपन्यास

By Mohit Choudhary|Updated : June 14th, 2022

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है हिंदी उपन्यास। इसे 3 युगों प्रेमचंद पूर्व हिन्दी उपन्यास, प्रेमचंद युगीन उपन्यास, प्रेमचन्दोत्तर हिन्दी उपन्यास में बांटा गया है।  इस विषय की की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए हिंदी उपन्यास के आवश्यक नोट्स कई भागों में उपलब्ध कराए जाएंगे। इसमें से प्रेमचंद पूर्व उपन्यास से सम्बंधित नोट्स इस लेख मे साझा किये जा रहे हैं। जो छात्र UGC NET 2022 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे। 

उपन्यास का उद्भव यूरोप में रोमांटिक (प्रेम प्रसंगयुक्त) कथा साहित्य में हुआ, जो मूलतः भारतीय प्रेमाख्यानों से प्रेरित था। हिन्दी में उपन्यास का आविर्भाव 19वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में हुआ। 'परीक्षा गुरु' (1882 ई.) को हिन्दी के प्रथम मौलिक उपन्यास के रूप में माना जाता है।

भारतीय उपन्यास की अवधारणा

  • आधुनिक काल में विकसित गद्य विधाओं में उपन्यास का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। उपन्यासों के प्रचलन, विकास सृजन का श्रेय पाश्चात्य देशों के लेखकों को प्राप्त है। हिन्दी में उपन्यास लेखन को परम्परा का आरम्भ अंग्रेजी व बंगला उपन्यासों से माना जाता है। 
  • हिन्दी से पहले बंगला में उपन्यास लिखे जाते थे। बंगला के अनेक उपन्यासकार रहे हैं, जिन्होंने हिन्दी उपन्यास साहित्य पर गहरा प्रभाव डाला है। इनमें बंकिमचन्द्र चटर्जी, शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि प्रमुख है। 
  • हिन्दी उपन्यास का आविर्भाव 19वीं शती के अंतिम चरण में हुआ था। हिन्दी में प्रथम उपन्यास को लेकर विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है, विद्वानों द्वारा अलग-अलग उपन्यासों को प्रथम उपन्यास माना गया है। 
  • श्री शिवनारायण श्रीवास्तव ने इंशा अल्ला खाँ कृत 'रानी केतकी की कहानी (1803 ई.) को हिन्दी का प्रथम उपन्यास माना है। 
  • डॉ. गोपालराय ने पण्डित गौरीदत द्वारा रचित 'देवरानी-जेठानी की कहानी (1870 ई.) को हिन्दी का प्रथम उपन्यास माना है। 
  • डॉ. विजयशंकर मल्ल ने श्रद्धाराम फल्लौरी द्वारा रचित 'भाग्यवती' (1877 ई.) को हिन्दी का प्रथम उपन्यास माना है। 
  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल एवं अन्य अधिकतर विद्वानों ने लाला श्रीनिवासदास के 'परीक्षा गुरु' (1882.ई) को हिन्दी का सर्वप्रथम मौलिक उपन्यास माना है।
  • डॉ. श्रीकृष्ण लाल ने देवकीनन्दन खत्री द्वारा रचित 'चन्द्रकान्ता' (1888 ई.) को हिन्दी का प्रथम उपन्यास माना है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने भारतेन्दु द्वारा रचित 'पूर्णप्रकाश चन्द्रप्रभा' (1889 ई.) को हिन्दी का प्रथम उपन्यास माना है।
  • आचार्य शुक्ल के मत की सर्वाधिक मान्यता प्राप्त होने के कारण 'परीक्षा गुरु' को ही हिन्दी का प्रथम उपन्यास माना जा सकता है।

हिन्दी उपन्यास का विकास 

हिन्दी उपन्यास हिन्दी उपन्यास के विकास क्रम को निम्न तीन भागों में बांटा गया है। 

  1. प्रेमचंद पूर्व हिन्दी उपन्यास 
  2. प्रेमचंद युगीन उपन्यास  
  3. प्रेमचन्दोत्तर हिन्दी उपन्यास

प्रेमचंद पूर्व हिन्दी उपन्यास

प्रेमचंद पूर्व युग को हिन्दी उपन्यास के विकास का आरंभिक काल माना जाता है। उपन्यास विधा इस युग में अपना स्वरूप ग्रहण करने का प्रयास कर रही थी। प्रेमचंद पूर्व उपन्यास, उपदेशात्मक तथा मनोरंजनात्मक प्रवृत्ति से परिचालित थे।

प्रेमचंद पूर्व उपन्यासों को निम्न चार वर्गों में बांटा जा सकता है-

  1. तिलस्मी अय्यारी उपन्यास 
  2. ऐतिहासिक उपन्यास 
  3. सामाजिक उपन्यास
  4. जासूसी उपन्यास

तिलस्मी अय्यारी उपन्यास

  • देवकीनन्दन खत्री से (तिलस्मी अय्यारी) उपन्यास की शुरुआत मानी जाती है। इन्होंने तिलस्मी अय्यारी (जादू-टोने से सम्बन्धित) उपन्यासों की रचना करके पाठकों का मनोरंजन किया और साथ ही यह भी माना जाता है कि इनके उपन्यासों को पढ़ने के लिए बहुत से अहिन्दी भाषियों ने हिन्दी भी सीखी। 
  • इनके लिखे प्रसिद्ध उपन्यास चन्द्रकान्ता, चन्द्रकान्ता सन्तति, भूतनाथ, काजल की कोठरी, कुसुम कुमारी, नरेन्द्र मोहिनी तथा वीरेन्द्र वीर आदि हैं।
  • खत्री जी ने अपने उपन्यासों में घटनाओं का संयोजन इस प्रकार किया है कि पाठक के मन में अन्त तक जिज्ञासा बनी रहती है। खत्री जी के उपन्यास साहित्यिक दृष्टि से भले ही उच्चकोटि के न हों, किन्तु उनके उपन्यासों का पाठक को अन्त तक बाँधे रखने तथा उनका भरपूर मनोरंजन करने में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।

जासूसी उपन्यास

  • बाबू गोपालराम गहमरी से जासूसी उपन्यासों की धारा प्रारम्भ हुई। गहमरी जो अंग्रेज़ी के जासूसी उपन्यासकार ऑर्थर कानन डायल से प्रभावित थे। 
  • इनके प्रसिद्ध उपन्यास अद्भुत लाश (1896), सरकटी लाश (1900), जासूस को भूल (1901), जासूस पर जासूस (1904) आदि हैं। इन उपन्यासों में भी घटना की प्रधानता थी। 
  • सामान्यतः ऐसे उपन्यासों का आरम्भ किसी हत्या अथवा लावारिस लाश की छानबीन से होता था। इन उपन्यासों में सामाजिक सीख अथवा उपदेशात्मकता की कोई गुंजाइश (स्थान) नहीं थी। किशोरीलाल गोस्वामी का नाम भी जासूसी उपन्यासकारों में उल्लेखनीय है। 
  • किशोरीलाल गोस्वामी कृत जासूसी उपन्यास जिन्दे की लाश, तिलस्मी शीशमहल, लीलावती, याकूत तख्ती आदि हैं।

ऐतिहासिक उपन्यास

  • ऐतिहासिक उपन्यासों का सम्बन्ध भारतीय अतीत की गौरव गाथा से रहा है। इस धारा के उपन्यासकारों पर पुनरुत्थानवादी चेतना का विशेष प्रभाव था। 
  • किशोरीलाल गोस्वामी और गंगा प्रसाद गुप्त की विशेष भूमिका ऐतिहासिक पात्रों आधार बनाकर राष्ट्रीय सामाजिक जागरण का प्रयास करने वाले उपन्यासकारों में रही है।
  • किशोरीलाल गोस्वामी कृत ऐतिहासिक उपन्यास है- सुल्ताना रजिया बेगम व रंग महल में हलाहल (1904), मल्लिका देवी या बंग सरोजिनी (1905), लखनऊ की कब व शाही महलसरा (1917) आदि है। गंगाप्रसाद गुप्त के ऐतिहासिक उपन्यास नूरजहाँ (1902), सिंह सेनापति, हम्मीर (1903) आदि है।

सामाजिक उपन्यास

  • सामाजिक उपन्यासों में नैतिकता तथा सोद्देश्य परकता की स्पष्ट झलक देखी गई। लज्जाराम शर्मा, किशोरीलाल गोस्वामी, अयोध्यासिंह उपाध्याय और ठाकुर जगमोहन सिंह इस धारा के प्रमुख उपन्यासकार रहे। लज्जाराम शर्मा के आदर्श दम्पति (1904), बिगड़े का सुधार अथवा सती सुखदेवी (1907) और आदर्श हिन्दू (1914) उपन्यासों का विशेष महत्त्व है।
  • किशोरीलाल गोस्वामी के लीलावती व आदर्श सती (1901) चपला व नव्य समाज (1903-1904), पुनर्जन्म व सौतिया डाह (1907), माधवी माधव व मदन मोहिनी (1903-1910) और अंगूठी का नगीना (1918) उपन्यासों को विशेष ख्याति प्राप्त हुई थी।
  • अयोध्यासिंह उपाध्याय का अधखिला फूल (1907), ठेठ हिन्दी का ठाउ (1899) प्रसिद्ध उपन्यास है। ठाकुर जगमोहन सिंह के श्यामास्वप्न (1889) उपन्यास ने भी विशेष ख्याति प्राप्त की।
  • प्रेमचन्द पूर्व उपन्यासों में भारतीय तथा पश्चिमी संस्कृति को आमने-सामने रखकर भारतीय संस्कृति के स्वर्णिम पक्षों को उद्घाटित करने का प्रयास किया गया। हिन्दू जाति की नैतिकता तथा नारी जाति के सतीत्व को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया गया है। 
  • भारतीय नारीत्व के मूल्यों को बचाने का प्रयास ही नहीं, बल्कि पश्चिमी अन्धानुकरण के दुष्परिणामों को उभारने का प्रयास भी इन उपन्यासों में दिखाई देता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि इस युग के उपन्यास प्रधानतः सुधारवादी एवं उपदेशात्मक वृत्ति को लेकर लिखे गए हैं, जिनका उद्देश्य मनोरंजन करना था। साथ ही प्रेमचन्दयुगीन उपन्यासों के लिए इस युग के उपन्यासों ने पृष्ठभूमि तैयार की है।

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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'प्रेमचंद पूर्व उपन्यास' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

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