Day 17: Study Notes हिंदी कहानी का उद्भव- प्रेमचन्दयुगीन, प्रेमचन्दोत्तर हिन्दी कहानी

By Mohit Choudhary|Updated : June 17th, 2022

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है हिंदी कहानी। इसे 4 युगों प्रेमचंद पूर्व, प्रेमचंदयुगीन, प्रेमचंदोत्तर, स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कहानी हिन्दी उपन्यास में बांटा गया है।  इस विषय की की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए हिंदी कहानी के आवश्यक नोट्स कई भागों में उपलब्ध कराए जाएंगे। इसमें से UGC NET के कहानियों से सम्बंधित नोट्स इस लेख मे साझा किये जा रहे हैं। जो छात्र UGC NET 2022 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे।          

प्रेमचन्दयुगीन हिन्दी कहानी

  • प्रेमचन्द का युग कहानी कला के विकास का उत्कर्ष युग था। इनके समय से ही आख्यायिका (शिक्षा लेने वाली कल्पित लघु कथा) कहानी के स्थान पर यथार्थ (सच्ची) कहानी का प्रारम्भ हुआ। 
  • प्रेमचंद जी पहले उर्दू में लिखते थे। उनका उर्दू में लिखा हुआ प्रसिद्ध कहानी-संग्रह 'सोजे-वतन' वर्ष 1907 प्रकाशित हुआ था, जो स्वातन्त्र्य भावनाओं से ओत-प्रोत होने के कारण अंग्रेज़ी सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया था। 
  • वर्ष 1916 में उनकी हिन्दी में लिखित प्रथम कहानी 'पंच परमेश्वर' प्रकाशित हुई। उनकी कहानियों में 'पंच परमेश्वर' के अतिरिक्त 'आत्माराम', 'बड़े घर की बेटी', 'शतरंज के खिलाड़ी', 'वज्रपात', 'रानी सारंगा', 'अलग्योझा', 'ईदगाह', 'पूस की रात', 'सुजान भगत', 'कफन', 'परीक्षा' आदि अधिक विख्यात हैं।
  • प्रेमचंद जी की कहानी में जनसाधारण के जीवन की सामान्य परिस्थितियों, मनोवृत्तियों एवं समस्याओं का चित्रण मार्मिक रूप में हुआ है। वे साधारण से साधारण बात को भी मर्मस्पर्शी रूप में प्रस्तुत करने की कला में सिद्धहस्त (निपुण) थे। 
  • इसी प्रकार कफन, पूस की रात और ठाकुर का कुआँ आदि उनकी यथार्थवादी कहानियाँ है, जिनका वर्णन निम्न है -
  1. दो बैलों की कथा कहानी में जब कहानीकार पशुओं की समझदारी और मनुष्य के प्रेम को दर्शाते हैं, तो एक आदर्श को स्थापित करते हैं। उनके अनुसार पशुओं को पशु समझकर केवल उनसे मेहनत का ही काम नहीं लेना चाहिए, अपितु उनसे प्रेमपूर्वक संबंध भी स्थापित करना चाहिए।
  2. पंच परमेश्वर कहानी में ग्रामीण जीवन, किसानों की सहृदयता, उनके काइयाँपन (स्वार्थी स्वभाव) का चित्रण और उनके आदर्श की स्थापना है।
  3. बड़े घर की बेटी कहानी में मुंशी जी ने संयुक्त परिवार के महत्त्व को दर्शाया है साथ ही संयुक्त परिवार में उत्पन्न होने वाली समस्याओं, कलहों, बात का बतंगड़ बन जाने और फिर आपसी समझदारी से बिगड़ती परिस्थिति को सामान्य करने के हुनर (कौशल) को दर्शाया है। इस प्रकार, कहानीकार का उद्देश्य यथार्थ के साथ एक आदर्श की स्थापना करना है, जोकि उन्होंने आनन्दी के माध्यम से बड़े घर की बेटी में दिखाया है।
  4. कफन कहानी पाठक को भीतर से तिलमिला देती है। गरीबी के कारण एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के जीवन को भी दाँव पर लगा देता है। इस कहानी में जब कहानीकार यह कहलवाता है कि "मरना तो जल्दी ही क्यों नहीं मरती" यहाँ कहानीकार ने अपनी यथार्थवादी दृष्टि का परिचय दिया है।
  5. पूस की रात कहानी में कहानीकार ने भारतीय किसान की लाचारी का यथार्थ चित्रण किया है। किसान राष्ट्र के पूरे सामाजिक जीवन का आधार है, उसके पास इतना भी धन नहीं है कि वह कड़कती सर्दी से बचने के लिए एक कंबल खरीद सके।
  6. ठाकुर का कुआँ कहानी में यथार्थ का वर्णन करते हुए कहानीकार ने ऊँची और नीची जाति के भेदभाव को दिखाने का प्रयास किया है तथा बताया है कि आज भी किस प्रकार भेदभाव की स्थिति समाज में बनी हुई है। 'गंगी' गाँव के ठाकुरों के डर से अपने बीमार पति को स्वच्छ पानी तक नहीं पिला पाती है। इस विवशता को पाठक अपने अन्दर (हृदय) तक महसूस करता है। यही लेखक की महानता का परिचय है।

प्रेमचन्दोत्तर हिन्दी कहानी

  • इस काल में कहानी की पुरानी परम्पराओं के साथ नई परम्पराओं का उदय और विकास हुआ। इस काल की कहानियों ने जीवन और जगत के विविध पक्षों को अपनी परिधि में समेटने का प्रयास किया। 
  • इस काल में जहाँ एक ओर प्रगतिवादी कहानियाँ लिखी गई, वहीं दूसरी ओर मनोविश्लेषणपरक कहानियाँ व यथार्थवादी कहानियाँ भी लिखी गई।
  • प्रगतिवादी परम्परा में मुख्यतः यशपाल, ख्वाजा अहमद अब्बास, अमृतराय, मन्मथनाथ गुप्त, कृष्णचन्द्र, रांगेय राघव, श्री कृष्णदास प्रभृति कहानीकारों को स्थान दिया जा सकता है।
  • यशपाल ने समाजवादी साम्यवादी दृष्टिकोण से आधुनिक समाज की विषमताओं का उद्घाटन अपनी कहानियों में किया हैं। इनके कहानी-संग्रहों में 'पिंजरे की उड़ान', 'वो दुनिया', 'तर्क का तूफान', 'फूलों का कुर्ता', 'तुमने क्यों कहा था कि मैं सुन्दर हूँ', 'उत्तमी की माँ' आदि उल्लेखनीय हैं।
  • मनोविश्लेषणवादी परम्परा में मुख्यतः जैनेन्द्र कुमार, भगवती प्रसाद वाजपेयी, भगवतीचरण वर्मा, अज्ञेय, इलाचन्द्र जोशी, प्रभृति कहानीकार आते हैं। जैनेन्द्र कुमार के अनेक कहानी-संग्रह प्रकाशित हुए यथा- 'वातायन', 'स्पद्ध', ‘फाँसी', 'पाजेब', 'जय-सन्धि', 'एक रात', 'दो चिड़ियाँ' आदि।
  • भगवती प्रसाद वाजपेयी ने जैनेन्द्र जी की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए अनेक कहानियाँ लिखी, जो 'हिलोर', 'पुष्करिणी', 'खाली बोतल' आदि में संग्रहीत है। 
  • सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' ने भी मनोविश्लेषणात्मक कहानियाँ लिखीं, जो 'विपथगा', 'परम्परा', 'कोठरी की बात', 'जयदोल' आदि में संग्रहीत है। 
  • इलाचन्द्र जोशी ने अपनी कहानियों में मनोविश्लेषण के आधार पर सूक्ष्म मानसिक तथ्यों का उद्घाटन मर्मस्पर्शी रूप में किया है। उनके कहानी-संग्रहों में 'रोमाण्टिक छाया', 'आहुति', 'दिवाली और होली' आदि महत्त्वपूर्ण हैं। यथार्थपरक सामाजिक परम्परा हिन्दी के विभिन्न कहानीकारों ने आधुनिक समाज की विभिन्न परिस्थितियों एवं समस्याओं का उद्घाटन यथार्थपरक दृष्टिकोण से किया है।
  • कहानीकारों के एक वर्ग ने अपनी कहानियों में काम-वासना, सौन्दर्य- लिप्सा एवं प्रणय आदि का चित्रण स्वच्छन्द रूप में किया है, जिन्हें यौनवादी परम्परा के अन्तर्गत स्थान दिया जा सकता है। इनमें आरसी प्रसाद सिंह (कालरात्रि), द्विजेन्द्रनाथ मिश्र, इन्द्रशंकर मिश्र, केसरीचन्द किशोर साहू (टेसू का फूल), प्रभृति के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

अन्ततः कहा जा सकता है कि इस युग के कथाकारों में मनोविश्लेषण प्रवृत्ति की प्रधानता है। इस काल में कहानीकारों ने युगीन परिवेश को पूर्णतः व्यक्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस युग की कहानियों में घटनाओं के साथ-साथ व्यक्ति चरित्र पर भी विशेष बल दिया जाने लगा।

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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'UGC NET के कहानियों' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

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