Day 22: Study Notes कथेतर गद्य: आत्मकथा

By Mohit Choudhary|Updated : June 23rd, 2022

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है हिंदी कथेतर गद्य। इसे रेखाचित्र, संस्मरण, जीवनी, आत्मकथा, यात्रा वृत्तान्त, रिपोर्ताज, डायरी में बांटा गया है।  इस विषय की की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए हिंदी कथेतर गद्य के आवश्यक नोट्स कई भागों में उपलब्ध कराए जाएंगे। इसमें से UGC NET के कथेतर गद्य से सम्बंधित नोट्स  इस लेख मे साझा किये जा रहे हैं। जो छात्र UGC NET 2022 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे।  

हिन्दी गद्य की विधाओं को प्रमुखतः मुख्य और गौण दो भागों में विभाजित किया गया है। मुख्य विधाएँ हैं- नाटक, एकांकी, निबंध, कहानी, उपन्यास, समालोचना।

गौण विधाओं में जीवनी, आत्मकथा, यात्रा वृत्तान्त, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, डायरी आदि हैं। इनमे से आत्मकथा के मुख्य बिंदुओं चर्चा करेंगे।

आत्मकथा

  • जब कोई महान व्यक्ति अपने जीवन की सम्पूर्ण घटनाओं का क्रमशः विवरण स्वयं लिखता है तो ऐसी विधा आत्मकथा कहलाती है। किसी भी व्यक्ति की आत्मकथा से उसकी विचारधारा दृष्टिकोण और युगीन परिस्थितियों का भी बोध हो जाता है।
  • हिन्दी की प्रथम आत्मकथा बनारसीदास कृत 'अर्धकथानक' है। अर्ध कथानक में उन्होंने अपने जीवन के पचपन वर्षों का सच्चा विवरण प्रस्तुत किया है। 
  • जानकी देवी बजाज हिन्दी की प्रथम महिला आत्मकथा लेखिका हैं। 'मेरी जीवन यात्रा' (1956) में इन्होंने अपने बचपन से लेकर पति की मृत्यु तक के जीवन की घटनाओं को निबद्ध किया है।
  •  'मेरा जीवन प्रवाह' में वियोगी हरि ने परिनिष्ठित भाषा-शैली में अपना आत्मचरित प्रस्तुत किया है। 
  • डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने मूलतः हिन्दी में अपनी आत्मकथा 'सत्य की खोज' लिखी थी। बाबू गुलाबराय ने 'मेरी असफलताएँ' में अपने जीवन का तटस्थ भाव से चित्रण किया है।
  • राहुल सांकृत्यायन ने 'मेरी जीवन यात्रा' अपने विद्रोही स्वभाव, यायावरी वृत्ति एवं विद्याव्यसन की चर्चा की है। 
  • यशपाल की आत्मकथा 'सिंहावलोकन’, में उनके राजनीतिक विचारों की प्रमुखता है। 
  • कमलेश्वर की आत्मकथा 'गर्दिश के दिन' (1980), 'जो मैंने जिया' (1992), 'यादों का चिराग' (1997) और 'जलती हुई नदी' (1999) नामक चार खण्डों में प्रकाशित है। 
  • रामदरश मिश्र की आत्मकथा 'सहचर है समय' (1991) में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ग्रामीण परिवेश से निकलकर संघर्ष के रास्ते पर अपने जीवन का लक्ष्य तलाश करने वाले एक साहित्यकार का पूरा अनुभव संसार साकार हुआ है।
  •  हरिवंशराय बच्चन ने अपनी आत्मकथा को 'स्मृति-यात्रा-यज्ञ' कहा है। उनकी आत्मकथा चार खण्डों में विभाजित हैं 'क्या भूलूँ क्या याद करूँ' (1969), 'नीड़ का निर्माण फिर-फिर' (1976), 'बसेरे से दूर' (1978) और 'दशद्वार से सोपान तक' (1985) में प्रकाशित है। 
  • दलित लेखकों में मोहनदास नैमिशराय की 'अपने-अपने पिंजरे' और ओमप्रकाश वाल्मीकि की 'जूठन' चर्चित आत्मकथा हैं। 
  • तसलीमा नसरीन की आत्मकथा सात खण्डों में प्रकाशित हुई है- 'मेरे बचपन के दिन', 'उत्ताल हवा', 'द्विखण्डित', 'वे अँधेरे दिन', 'मुझे घर ले चलो', 'नहीं कहीं कुछ भी नहीं' (2013), 'निर्वासन' (2017)|
  • इसी प्रकार डॉ. नगेन्द्र, भीष्म साहनी, बाबू श्यामसुन्दर दास, गोविन्ददास, विष्णु चन्द्र शर्मा, पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र, यशपाल आदि लेखकों ने भी अपनी-अपनी आत्मकथा लिखी हैं।

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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'कथेतर गद्य' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

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