रामवृक्ष बेनीपुरी - माटी की मूरतें
- रामवृक्ष बेनीपुरी हिन्दी के श्रेष्ठ रेखाचित्रकार माने जाते हैं। इनके रेखाचित्रों में सरल भाषा शैली में सिद्धहस्त कलाकारी दिखाई देती है। 'माटी की मूरतें' वर्ष 1946 में प्रकाशित हुई। इस संग्रह को विशेष ख्याति मिली। इस संग्रह में इन्होंने समाज के उपेक्षित पात्रों को गढ़कर नायक का दर्जा दिया है।
- उदाहरणस्वरूप 'रजिया' नामक रेखाचित्र के माध्यम से निम्न वर्ग की एक बालिका को जीवन्त कर दिया है। इस संग्रह के अन्य रेखाचित्रों में बलदेव सिंह, मंगर बालगोबिन भगत, बुधिया, सरजू भैया प्रमुख हैं।
- इन रेखाचित्रों की श्रेष्ठता के बारे में मैथिलीशरण गुप्त का कथन है "लोग माटी की मूरतें बनाकर सोने के भाव बेचते हैं पर बेनीपुरी सोने की मूरतें बनाकर माटी के मोल बेच रहे हैं। "
- "माटी की मूरतें" संग्रह की रचनाओं में बेनीपुरी जी ने गाँव की जमीन से उठाए गए कुछ अनगढ़ चरित्रों को न केवल रंगत दी है अपितु उनमें प्राण भी फूँक डाले हैं। गाँव के किसी पीपल या बड़ के नीचे रखी हुई माटी की मूरतों के बारे में बेनीपुरी जी उन मूर्तियों को जीवनियाँ व चलते-फिरते हुए शब्द चित्र मानते हुए कहते हैं – “मानता हूँ, कला ने उन पर पच्चीकारी की है, किन्तु मैंने ऐसा नहीं होने दिया कि रंग-रंग में मूल रेखाएँ ही गायब हो जाएँ, मैं उसे अच्छा रसोइया नहीं मानता, जो इतना मसाला रख दे कि सब्जी का मूल स्वाद ही नष्ट हो जाए।" यह जीवन के विविध रंगों को रेखांकित करती बेनीपुरी जी की सशक्त लेखनी से निकली आकर्षक, मार्मिक और संवेदनशील रेखाचित्र है।
महादेवी वर्मा - ठकुरी बाबा
- छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा रचित रेखाचित्र 'ठकुरी बाबा' में ग्रामीण जीवन के लक्षण का यथार्थ चित्रण है। 'ठकुरी बाबा' ग्रामीण यात्रियों के दल का नेतृत्व करते हैं, जो परम शान्त, स्नेहसिक्त स्वर के हैं। यात्रियों के दल में विविधता है। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी-अपनी समस्याएँ हैं। वृद्धावस्था में जीवन-यापन करते समय आने वाली समस्याओं का चित्रण करना महादेवी वर्मा का परम उद्देश्य रहा है।
- ठकुरी बाबा अपने समाज के प्रतिनिधि हैं। समाज में विकृतियाँ व्यक्तिगत हैं, परन्तु सद्भाव सामूहिक रहते हैं। इसके विपरीत हमारी दुर्बलताएँ समष्टिगत होती हैं, परन्तु शक्ति वैयक्तिक मिलती है। ठकुरी बाबा की सहायता वैयक्तिक चित्रित न होकर ग्रामीण जीवन में व्याप्त सहृदयता को व्यक्त करती है।
- वृद्ध और युवा के अन्तर को स्पष्ट करते हुए महादेवी जी लिखती हैं “यदि वह वृद्ध यहाँ न होकर हमारे बीच में होता, यह प्रश्न भी मेरे मन में अनेक बार उठ चुका है, पर जीवन के अध्ययन ने मुझे बता दिया कि इन दोनों समाजों का अन्तर मिटा सकना सहज नहीं। उनका बाह्य जीवन दीन हैं और हमारा अन्तर्जीवन रिक्त ।"
- विधवा की समस्या, विधुर की समस्या, वृद्ध की समस्या, ग्रामीण जीवन, स्त्री शृंगार आदि का चित्रण करना महादेवी जी का उद्देश्य रहा है।
- महादेवी जी ने इस रेखाचित्र के माध्यम से नगरीय एवं ग्रामीण सभ्यताओं का अन्तर बड़ी मार्मिकता के साथ स्पष्ट किया है। लेखिका ने सांस्कृतिक समन्वय की भावना को चित्रित किया है। रेखाचित्र द्वारा ग्रामीण समाज की विशेषताओं का उद्घाटन किया है। आधुनिक शिक्षित, शिष्ट और सभ्य कहे जाने वाले व्यक्तियों पर व्यंग्य किया है।
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'कथेतर गद्य' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
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