यात्रा साहित्य
- यात्रा करना मनुष्य की नैसर्गिक प्रवृत्ति है। मानव के विकास की गाथा में यायावरी का महत्वपूर्ण योगदान है। मनुष्य कभी-न-कभी, कोई न कोई यात्रा अवश्य करता है लेकिन सृजनात्मक प्रतिभा के धनी अपने यात्रा अनुभवों को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत कर यात्रा साहित्य की रचना करने में सक्षम हो जाते हैं।
- जब कोई लेखक अपने द्वारा की गई किसी यात्रा का वास्तविक, कलात्मक या साहित्यिक वर्णन करता है तो ऐसी रचना को यात्रा वृतांत या यात्रा साहित्य कहते हैं।
- यात्रा साहित्य का उद्देश्य लेखक के यात्रा अनुभवों को पाठकों के साथ बाँटना और पाठकों को भी उन स्थानों की यात्रा के लिए प्रेरित करना है। हिन्दी साहित्य में अन्य गद्य-विधाओं की भाँति ही भारतेन्दु-युग से यात्रा-साहित्य का आरम्भ माना जा सकता है।
- भारतेन्दु ने 'सरयू पार की यात्रा', 'मेंहदावल की यात्रा', 'लखनऊ की यात्रा' आदि यात्रा वृत्तान्तों का बड़ा रोचक और सजीव वर्णन किया है।
- बालकृष्ण भट्ट की 'गया यात्रा' और प्रताप नारायण मिश्र की 'विलायत यात्रा' क्रमशः हिन्दी प्रदीप के मार्च, 1894 के तथा नवम्बर, 1897 के अंकों में प्रकाशित हुए।
- द्विवेदी युग में देवी प्रसाद खत्री कृत 'बद्रिकाश्रम यात्रा, गोपालराम गहमरी कृत लंका यात्रा का विवरण, ठा. गदाधर सिंह कृत 'चीन में तेरह मास' तथा 'हमारी एडवर्ड तिलक यात्रा' उल्लेखनीय कृतियाँ हैं।
- छायावाद युग में रामनारायण मिश्र ने 'यूरोप में छह मास' (1932) में यूरोप के दर्शनीय स्थानों के रोचक वर्णन के साथ-साथ वहाँ के रहन-सहन, शिक्षा पद्धति आदि का भी यथास्थान उल्लेख किया है।
- सत्यदेव परिव्राजक छायावादी युग के सर्वप्रमुख यात्रावृत्त लेखक हैं। 'मेरी जर्मन यात्रा' (1926), 'यात्री मित्र' (1936), 'यूरोप की सुखद स्मृतियाँ' (1937), 'ज्ञान के उद्यान में (1937), 'नई दुनिया के मेरे अद्भुत संस्मरण' (1937), 'अमेरिका प्रवास की मेरी अद्भुत कहानी' (1937) इनकी उल्लेखनीय कृतियाँ हैं।
- यात्रावृत्त लेखन में राहुल सांकृत्यायन का महत्वपूर्ण स्थान है। 'तिब्बत में सवा वर्ष' (1933), 'मेरी यूरोप यात्रा' (1935), 'मेरी तिब्बत यात्रा' (1987), 'मेरी लद्दाख यात्रा' (1989), 'किन्नर देश में' (1948), 'रूस में पच्चीस मास' (1952) इनके महत्त्वपूर्ण यात्रावृत्त हैं।
- इसी प्रकार रामवृक्ष बेनीपुरी कृत 'पैरों में पंख बाँधकर' (1952), 'उड़ते चलो उड़ते चलो' (1954), यशपाल कृत 'लोहे की दीवार के दोनों ओर' (1958), अज्ञेय कृत 'अरे यायावर रहेगा याद', 'एक बूँद सहसा उछली' (1960) आदि महत्त्वपूर्ण यात्रावृत्त हैं।
- रामधारी सिंह 'दिनकर' कृत 'देश-विदेश' (1957) तथा 'मेरी यात्राएँ (1970) में अनेक यात्रावृत्त संकलित हैं।
- विष्णु प्रभाकर ने 'हँसते निर्झर : दहकती भट्टी' (1966) में देश-विदेश से सम्बन्धित इक्कीस यात्रावृत्तों को संकलित किया है।
- 'अप्रवासी की यात्राएँ' में डॉ. नगेन्द्र ने जापान, अमेरिका, यूरोप आदि देशों के शैक्षिक जीवन का चित्रण किया 'अमेरिकी विश्वविद्यालयों में हिन्दी' इस यात्रावृत्त का सर्वाधिक ज्ञानवर्द्धक प्रकरण है।
- मोहन राकेश कृत 'आखिरी चट्टान तक' (1953) सृजनात्मक यात्रावृत्त है।
- 'कितना अकेला आकाश' में नरेश मेहता ने यूगोस्लाविया और अन्य यूरोपीय लोगों की मानसिकता का बड़ा मार्मिक और प्रभावशाली चित्रण किया है।
- मनोहर श्याम जोशी कृत 'क्या हाल है चीन के' में चीन के दो मुँहे कूटनीतिक चरित्र की असलियत का पर्दाफाश किया है। इसके साथ ही 'पश्चिमी जर्मनी पर उड़ती नजर' में पश्चिमी जर्मनी के प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ वहाँ के लोगों के रहन-सहन, उनकी सोच और जीवन शैली का यथार्थ चित्रण किया है।
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