रिपोर्ताज
- रिपोर्ताज फ्रांसीसी भाषा का शब्द है।
- जिस रचना में वर्ण्य विषय का आँखों देखा तथा कानों सुना ऐसा विवरण प्रस्तुत किया जाता है, जिससे पाठक का हृदय भाव-विभोर हो जाए और वह उसे भूल न सके उसे रिपोर्ताज कहते हैं। रिपोर्ताज में तथ्यों को कलात्मक व प्रभावी ढंग से व्यक्त किया जाता है।
- रिपोर्ताज का उद्भव 1939 ई. में हुआ। हिन्दी में रिपोर्ताज लेखन की परम्परा शिवदान सिंह चौहान की रचना 'लक्ष्मीपुरा' (1938) से शुरू हुई।
- रिपोर्ताज के प्रचार-प्रसार में हंस पत्रिका का सर्वाधिक योगदान है। इसी पत्रिका में शिवदान सिंह चौहान ने 'मौत के खिलाफ जिन्दगी की लड़ाई' शीर्षक रिपोर्ताज लिखा था जिसमें स्वतंत्रता से पूर्व देश की स्थिति का विवरण है। 'हंस' पत्रिका में 'समाचार और विचार' तथा 'अपना देश' स्तम्भों के अन्तर्गत विभिन्न लेखकों के रिपोर्ताज प्रकाशित होते रहे हैं।
- 'विशाल भारत' में रांगेय राघव के रिपोर्ताज 'अदम्य जीवन' शीर्षक से प्रकाशित होते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के अन्तिम दिनों में भयंकर अकाल पड़ा और महामारी का प्रकोप भी हुआ। रांगेय राघव उस भयानक दृश्य को स्वयं देखने गए। वहाँ उन्होंने क्षुधापीड़ित, अकाल / महामारी से मरते हुए नर-नारियों और उनकी विवशता का लाभ उठाते शोषक पूँजीपतियों, व्यवसायियों के अमानवीय कृत्यों को देखा और उन दृश्यों के मार्मिक एवं हृदय विदारक रिपोर्ताज लिखे, जो 'तूफानों के बीच' शीर्षक से प्रकाशित हुए।
- इनके अतिरिक्त प्रभाकर माचवे का 'प्रभाकर जब पाताल गए, लक्ष्मीचन्द्र जैन का 'कागज की किश्तियाँ', कामता प्रसाद सिंह का 'मैं छोटा नागपुर में हूँ, भदन्त आनन्द का 'देश की मिट्टी बुलाती है', धर्मवीर भारती का 'युद्धयात्रा' तथा शमशेर बहादुर सिंह का 'प्लॉट का मोर्चा' आदि हिन्दी के उल्लेखनीय रिपोर्ताज हैं।
डायरी
- डायरी लेखन व्यक्ति के द्वारा लिखा गया व्यक्तिगत अनुभवो, सोच और भावनाओं को लिखित रूप में अंकित करके बनाया गया एक संग्रह है। इसे दैनन्दिनी, रोजनामचा और दैनिकी भी कहते है।
- डायरी का सम्बन्ध दैनिक कार्य या दिनचर्या से है अर्थात् डायरी दैनिक व्यापारों या घटनाओं का ब्यौरा है। सामान्यतः यह माना जाता है कि डायरी एक दैनन्दिनी आत्मकथ्य है।
- डायरी में लेखक घटनाओं को उसी अनुक्रम में लिखता जाता है, जिस क्रम से वे घटित होती हैं। साहित्यिक अर्थ में यह केवल तिथि देकर अपनी दिनचर्या का उल्लेख मात्र नहीं है। डायरी इससे परे एक मानसिक उद्वेग को व्यक्त करने का ऐसा माध्यम है जिसमें भावुक हृदय की संवेदनात्मक अभिव्यक्ति भी हो सकती है।
- समीक्षकों ने डायरी को इसलिए साहित्य की कोटि में रखा है कि या तो वह किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के व्यक्तित्व का उद्घाटन करती है या मानव समाज के विभिन्न पक्षों का सूक्ष्म और जीवंत चित्र उपस्थित करती है।
- डायरी में लेखक अपनी रुचि व आवश्यकतानुसार राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, साहित्यिक आदि विभिन्न पक्षों के साथ निज अनुभूतियों का चित्रण कर सकता है। डायरी के माध्यम से हम अतीत में लौट सकते हैं तथा अपने अच्छे व बुरे अनुभवों को पुनर्जीवित भी कर सकते हैं।
- साहित्य की एक विधा के रूप में प्रतिष्ठित डायरी विधा का आगमन भारत में 19वीं शताब्दी में हुआ। जब व्यक्ति तथा अन्तरंग अनुभूतियों को साहित्य में स्थान मिलना आरम्भ हुआ तो डायरी का प्रचलन तेजी से बढ़ा, जो अब तक चल रहा है।
- रामधारी सिंह दिनकर 'डायरी' शब्द को इस प्रकार स्पष्ट करते हैं कि “डायरी वह चीज है, जो रोज लिखी जाती है और जिसमें घोर रूप से वैयक्तिक बातें भी लिखी जा सकती हैं।"
- कमलेश्वर डायरी को “लेखक का अपना और अपने हाथ से किया हुआ 'पोस्टमार्टम' मानते हैं।"
अन्ततः कहा जा सकता है कि डायरी का सम्बन्ध मूलत: लेखक से होता है। अतः यह उनके ही विचार और अनुभव की शब्द सृष्टि है।
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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'कथेतर गद्य' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
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