शिवरानी देवी - प्रेमचन्द घर में
- प्रेमचन्द जी की पत्नी शिवरानी देवी ने 'प्रेमचन्द घर में' नाम से उनकी जीवनी लिखी और उनके व्यक्तित्व के उस हिस्से को उजागर किया है, जिससे लोग अनभिज्ञ थे।
- इस जीवनी में लिखी गई हर घटना सत्य पर आधारित है, क्योंकि उन्होंने खुद उन पलों को जिया है, महसूस किया है। यह पुस्तक वर्ष 1949 में प्रथम बार प्रकाशित हुई तथा वर्ष 2005 में संशोधित करके इसे पुनः प्रकाशित किया गया। यह साहित्य की एक अमूल्य निधि है।
- प्रेमचन्द एक महान् साहित्यकार तथा सहृदय होने के अतिरिक्त एक संवेदनशील पति भी थे, वे स्त्री-पुरुष समानता के पक्षधर थे। उन्होंने अपनी पत्नी को हमेशा लिखने तथा सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया। शिवरानी ने इस पुस्तक में प्रेमचन्द जी के साथ बिताए हुए जीवन के सुनहरे पलो को सहज संवेदना के साथ लिखा है। जीवन के अन्तिम क्षणों में भी प्रेमचन्द जी ने साहित्य रचना का साथ नहीं छोड़ा और उनका पत्नी के प्रति लगाव और भी बढ़ गया। शिवरानी अपने पति की महानता को उनके मरणोपरान्त ही समझ पाई।
- उनकी मृत्यु के पश्चात् शिवरानी देवी का वह विलाप हृदय को छू लेता है कि जब तक जो चीज हमारे पास रहती है तब तक हमें उसकी कद्र नहीं होती, लेकिन वो जब हमसे ओझल हो जाती है, तो हमारा मन पछताता रहता है और तब हमारे पास दुःखी होने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
- इस जीवनी में साहित्य प्रेमी प्रेमचन्द का केवल साहित्यकार का रूप ही नहीं, अपितु उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का वर्णन है।
विष्णु प्रभाकर - आवारा मसीहा
- विष्णु प्रभाकर जी की सर्वश्रेष्ठ कृति 'आवारा मसीहा' है। यह बंगाल के अमर कथा-शिल्पी और सुप्रसिद्ध उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के जीवन पर आधारित है।
- इस जीवनी को लिखकर विष्णु जी ने हिन्दी और बंगला साहित्य के बीच ऐसे सेतु का निर्माण किया है, जो समूचे राष्ट्र की रागात्मक एकता का प्रतीक है। शरतचन्द्र की सम्पूर्ण जीवनी में लगभग 430 पृष्ठ हैं, ये तीन पर्वों में विभाजित हैं-(1) दिशाहारा (2) दिशा की खोज (3) दिशान्त
- प्रथम पर्व दिशाहारा शीर्षक में हैं- विदा का दर्द, भागलपुर में कठोर अनुशासन राजू उर्फ इन्द्रनाथ से परिचय, वंश का गौरव, होनहार बिरवान रॉबिनहुड अच्छे विद्यार्थी से कथा-विशारद तक, एक प्रेम-प्लावित आत्मा, वह युग, नाना परिवार से विद्रोह, शरत को घर मत आने दो, राजू उर्फ इन्द्रनाथ की याद, सृजन का युग, आलोशध्य और छाया मेम की अपार भूख, निरुद्देश्य यात्रा, जीवन मन्थन से निकला विष।
- द्वितीय पर्व दिशा की खोज में शरत के लेखन विकास प्रेरणा के स्रोत रचनाओं की पृष्ठभूमि और पात्रों से समरसता, रंगून प्रवास, गृह दाह, सृजन का आवेग, चरित्रहीन, विराज बहू और आवारा श्रीकान्त की चर्चा है।
- तृतीय पर्व दिशान्त में 'वह' से 'वे' सृजन का स्वर्ण युग देश की मुक्ति का व्रत, राजनीति से उनका लगाव और नारी चरित्र के परम रहस्य जाता के रूप में शरत का चित्रण है। शरत के जीवन पर प्रकाश डालने वाली यह प्रथम कृति है। इसके स्त्री पात्र इतने मजबूत और विशाल से लगते हैं कि पाठकों के साथ विशेष कर, महिला पाठकों के मन में शरत के लिए अगाध लगाव को समझा जा सकता है।
राहुल सांकृत्यायन- मेरी तिब्बत यात्रा
- राहुल सांकृत्यायन को महापंडित की उपाधि दी जाती है। ये हिन्दी के एक प्रमुख साहित्यकार हैं। 'मेरी तिब्बत यात्रा' वृत्तान्त में इन्होंने अपनी तिब्बत यात्रा का वर्णन किया है, जो लेखक ने वर्ष 1929-30 में नेपाल के रास्ते की थी। उस समय भारतीयों को तिब्बत यात्रा की अनुमति नहीं थी। अतः उन्होंने यह यात्रा एक भिखारी के छद्म वेश में की थी।
- लेखक ने तिब्बत की यात्रा उस समय की थी, जब नेपाल से तिब्बत जाने का केवल एक ही रास्ता था। इस रास्ते पर नेपाल के लोग भी भारत के लोगों के साथ-साथ जाते थे। यह रास्ता व्यापारिक और सैनिक रास्ता भी था, इसलिए लेखक ने इसे मुख्य रास्ता बताया है। तिब्बत में जाति-पाँति और छुआछूत नहीं था। वहाँ औरतें पर्दा नहीं करती थीं। चोरी की आशंका के कारण भिखारियों को कोई घर में घुसने नहीं देता था और न ही अपरिचित होने पर कोई घर के अंदर जा सकता था। साथ ही अपनी जरूरत के अनुसार अपनी झोली से चाय दे सकते थे, घर में बहू या सास उसे आपके लिए पका देगी।
- तिब्बत के नारी समाज का वर्णन करते हुए उन्होंने लिखा है कि तिब्बत में भिक्षुणियों की संख्या ज्यादा है, क्योंकि वहाँ की प्रथानुसार सभी भाइयों की एक पत्नी होने के कारण अनेक लड़कियाँ अविवाहित रह जाती थीं और वे भिक्षुणियां बन जाती हैं। राहुल जी ने 'अपनी तिब्बत यात्रा' में वहाँ की संस्कृति का अद्भुत ढांचा प्रस्तुत किया है।
अज्ञेय - अरे यायावर रहेगा याद
- 'अरे यायावर रहेगा याद' पुस्तक सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' द्वारा रचित यात्रा वृत्तान्त है। इसमें आठ यात्रा वृत्तान्तों का वर्णन है और सभी में पर्याप्त विविधता है। यात्राओं में असम, बंगाल, औरंगाबाद, कश्मीर, पंजाब व हिमाचल प्रदेश के भू-भागों का वर्णन है तथा इसमें तमिलनाडु के अति प्राचीन मन्दिरों के बारे में भी बताया गया है।
- इस पुस्तक की शुरुआत ब्रह्मपुत्र के मैदानी भाग में अवतरण से हुई, फिर बात हिमालय की दुर्गम झील में डेरा डालने की हुई और अंत एलोरा की गुफाओं में इतिहास खोजने की कोशिश से हुआ।
- 'अज्ञेय' जी के यात्रा वृत्तांतों को पढ़ते समय पाठक को लगता है कि वह अज्ञेय जी के साथ स्वयं पहाड़ों में व नावों में घूम रहा है। लेखक ने स्थानीय लोगों के साथ उनकी भाषा में बात करके कई स्थानों के बारे में प्रचलित किंवदंतियों के बारे में बताया है।
- 'अज्ञेय' जी के यात्रा वृत्तान्तों में पर्यावरण का इतिहास का व साहित्य का चिन्तन देखने को मिलता है। उन्होंने प्रचलित ऐतिहासिक गाथा को उपलब्ध प्राकृतिक अवरोधों से तौलने की कोशिश की है और सोचा है कि उस समय क्या हुआ होगा।
- 'अज्ञेय' जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ है। यात्रा वृत्तान्त की शैली कहानीमय है। ऐसा लगता है कि अज्ञेय जी कोई कहानी कह रहे हैं। हम सब उस कहानी के पात्र हैं। बीच-बीच में उन्होंने संस्कृत में सूक्तियाँ भी लिखीं और हिन्दी की कविताएँ भी रचीं जो कि उतनी ही अच्छी हैं जितने अज्ञेय जी के यात्रा वृत्तान्त |
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'कथेतर गद्य' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
Thank you
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