UGC NET की आत्मकथाओं की समीक्षा

By Mohit Choudhary|Updated : June 24th, 2022

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है हिंदी कथेतर गद्य। इसे रेखाचित्र, संस्मरण, जीवनी, आत्मकथा, यात्रा वृत्तान्त, रिपोर्ताज, डायरी में बांटा गया है।  इस विषय की की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए हिंदी कथेतर गद्य के आवश्यक नोट्स कई भागों में उपलब्ध कराए जाएंगे। इसमें से UGC NET के कथेतर गद्य से सम्बंधित नोट्स  इस लेख मे साझा किये जा रहे हैं। जो छात्र UGC NET 2022 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे।    

तुलसीराम - मुर्दहिया

  • डॉ. तुलसीराम द्वारा रचित आत्मकथा 'मुर्दहिया' में दलितों की पीड़ा को रेखांकित करने के साथ-साथ अपने गाँव धरमपुर (आजमगढ़) के जरिए उस समय के पूरे भारतवर्ष के गाँवों को ही चित्रित कर दिया है। 
  • डॉ. तुलसीराम कहते हैं- "इसमें मेरा दर्द है, मेरे समाज का दर्द है। मेरा पूरा जीवन ही मुर्दहिया है। मुर्दहिया यानी गांव का वह कोना जहां मुर्दे फूंके जाते हैं, मुर्दहिया यानी गांव का वह हिस्सा जहाँ मरे हुए जानवरों के चमड़े उतारे जाते हैं।"
  • तुलसीराम द्वारा अपनी आत्मकथा को मुर्दहिया नाम देना केवल एक शीर्षक मात्र नहीं अपितु उनकी रचना की आत्मा है।
  • 'मुर्दहिया' आत्मकथा में गाँव में घटित हर घटना को अन्ध-विश्वास से जोड़कर देखा जाता है। उल्का पिण्ड का रात में टूटने को भूत समझा जाता है। जब कोई उड़ता हुआ कौआ किसी को पैरों या चोंच से मार देता है तो इसे भी अपशकुन माना जाता है। बचपन में डॉ. तुलसीराम को चेचक निकल आने व इसमें उनकी एक आँख चले जाने से घरवालों समेत सभी गाँव वाले उन्हें अपशकुनि मानते हैं। 
  • डॉ. तुलसीराम 'मुर्दहिया' आत्मकथा के माध्यम से पूरे भारतीय देहाती गाँव में फैले अन्धविश्वास को अपने गाँव के जरिए बताते हैं। गाँव की दक्षिण दिशा में दलितों को रहने के लिए ब्राह्मणों, ठाकुरों आदि द्वारा विवश किया जाता है, क्योंकि एक हिन्दू अन्धविश्वास के अनुसार किसी भी गाँव की दक्षिण दिशा में ही सर्वप्रथम कोई आपदा या बीमारी आती है।
  • 'मुर्दहिया' आत्मकथा में वेदना, आक्रोश व उत्तेजना का उतावलापन नहीं है अपितु इसमें सभी चीज़ों को बड़ी बारीकियों से पेश किया गया है।

मन्नू भण्डारी - एक कहानी यह भी

  • 'एक कहानी यह भी' मन्नू भण्डारी द्वारा आत्मपरक शैली में लिखी हुई आत्मकथा है। इसमें लेखिका ने बड़े ही प्रभावशाली ढंग से यह बात समझाने का प्रयास किया है कि बालिकाओं को किस तरह की पाबंदियों का सामना करना पड़ता है। 
  • लेखिका ने अपने पिता से अपने वैचारिक मतभेद का भी इसमें चित्रण किया है। इसमें मन्नू भण्डारी ने पारिभाषिक अर्थ में कोई सिलसिलेवार आत्मकथा नहीं लिखी। अपनी आत्मकथा में लेखिका ने अपने जीवन से जुड़े हुए व्यक्तियों व घटनाओं के बारे में उल्लेख किया है। 
  • इस आत्मकथा में मन्नू जी के किशोर जीवन से जुड़ी हुई कुछ घटनाओं के साथ उनके पिताजी और उनकी कॉलेज की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का व्यक्तित्व विशेष रूप से उभर कर आया है। 
  • लेखिका ने बड़े रोचकीय ढंग से एक साधारण लड़की के असाधारण बनने के प्रारम्भिक पड़ावों का वर्णन किया है। वर्ष 1946-47 की आज़ादी की आँधी ने म जी को भी अछूता नहीं छोड़ा। 
  • उपर्युक्त आत्मकथा की भाषा तथा शिल्प में सादगी हैं। कहानी के भावों के अनुरूप ही तत्सम, तद्भव व देशज शब्दों का समुचित प्रयोग किया गया है। कहीं-कहीं पर कुछ अंग्रेज़ी व उर्दू शब्दों का भी प्रयोग किया गया है जिससे भाषा में सहजता व रोचकता आ गई है।

हरिवंशराय बच्चन - क्या भूलूँ क्या याद करूँ

  • 'क्या भूलूँ क्या याद करूँ' बच्चन जी की आत्मकथा अपने जीवन और युग के प्रति एक प्रयास है। यह आत्मकथा वर्ष 1969 में प्रकाशित हुई। इस आत्मकथा को गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
  • बच्चन जी की आत्मकथा के चार खण्ड हैं- पहला खण्ड- 'क्या भूलूँ क्या याद करूँ’, दूसरा खण्ड 'नीड़ का निर्माण फिर-फिर', तीसरा खण्ड- 'बसेरे से दूर' तथा चौथा खण्ड-'दश द्वार सोपान तक'। हिन्दी प्रकाशनों में इस कथा का अत्यन्त ऊँचा स्थान है।
  • उन्होंने स्वयं अपनी आत्मकथा की भूमिका में कहा है- 'अगर मैं दुनिया से किसी पुरस्कार का तलबगार होता तो अपने आपको और अच्छी तरह सजाता-बजाता और अधिक ध्यान से रंग चुनकर उसके सामने पेश करता। मैं चाहता हूँ कि लोग मुझे मेरे सरल, स्वाभाविक और साधारण रूप में देख सकें। सहज निष्प्रयास प्रस्तुत, क्योंकि मुझे अपना ही तो चित्रण करना है।"
  • यह आत्मकथा किसी एक व्यक्ति की निजी गाथा नहीं, अपितु युगीन तत्कालीन परिस्थितियों में जकड़े, एक भावुक, कर्मठ व्यक्ति और जीवन के कोमल-कठोर, गोचर-अगोचर, लौकिक-अलौकिक पक्षों को जीवन्त करता महाकाव्य है।
  • बच्चन जी ने अपनी इस यात्रा में कीट्स से लेकर कबीर तक के मध्य साहित्य को मापा तथा अपने जीवन के धार्मिक पक्षों को उजागर किया है। अस्वस्थता के कारण बच्चन जी की पहली पत्नी श्यामा चल बसीं। उनके साथ गुजरे जीवन के उन अंकों को बच्चन जी ने बड़ी भावुकता से ऐसे साकार किया कि वे सभी युगलों के लिए एक प्रतीक बन गए।

रमणिका गुप्ता - आपहुदरी 

  • 'आपहुदरा एक जिद्दी लड़की की आत्मकथा है। यह रमणिका गुप्ता की अपनी एक निजी यात्रा है। इसमें लेखिका ने एक निर्भीक स्त्री के रूप में अपने जीवन की अन्तरंगताओं को बेहद स्पष्ट रूप से दिखाने का प्रयास किया है,
  • रमणिका गुप्ता ट्रेड यूनियन से जुड़ी कार्यकर्ता रही हैं, लेकिन उनके जीवन की अपनी खोज सत्ता तक पहुंचकर अपनी उपस्थिति का अहसास कराना भर न था वे की आकांक्षा के बारे में इसी आत्मकथा के बारे में कहती है "मैं जब सब परिधियाँ बाँध सकती थीं, सीमाएँ तोड़ सकती थी सीमाओं में रहना मुझे हमेशा कचोटता रहा है, सीमा तोड़ने का आभास ही मुझे अत्यधिक सुखकारी लगता है, मैं वर्जनाएँ तोड़ सकती हूँ--- अपनी देह की मैं खुद मालिक हूँ. मैं संचालक हूँ, संचालित नहीं,”
  • सम्पूर्ण आत्मकथा में रमणिका एक जिद्दी लड़की की भूमिका के साथ-साथ स्त्री की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति की कामना की खोज में निकल पड़ती हैं वे जहाँ कहीं भी जाती हैं, उनके सम्बन्ध वहीं बनते जाते हैं, वे कहीं भी छली नहीं जातीं। 
  • इस भारतीय समाज के जिन पुरुषों से रमणिका गुप्ता का सामना हुआ उनमें उनका पति, पति के दोस्त, नेता, नेता के साथ चलने वाले छुटभैये, ओहदेदार पुरुषों की भी लम्बी फेहरिस्त है। 
  • पूरी आत्मकथा में स्त्री दैन्य कहीं नहीं है। आपहुदरी में रमणिका गुप्ता अन्तरंगता विमर्श में भिन्न-भिन्न आयामों की पड़ताल कर स्त्री को स्वयं अपनी राह बनने को तैयार करती हैं। रमणिका गुप्ता ने हिन्दी की सेवा एक सामाजिक कार्यकर्ता की तरह की है। 
  • इस आत्मकथा में रमणिका जी ने जैसा अपना जीवन जिया वैसा ही लिखा है। लेखिका ने इस आत्मकथा के माध्यम से अपने साहस की कथा कही है। आपहुदरी आत्मकथा के रूप में एक नया मोड़ भी हैं।

हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'कथेतर गद्य' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

Thank you

 

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