खड़ी बोली आन्दोलन
- हिन्दी को खड़ी बोली का विकसित रूप माना जाता है।
- खड़ी बोली या कौरवी का उद्भव शौरसेनी अपभ्रंश के उत्तरी रूप से हुआ है तथा इसका क्षेत्र देहरादून का मैदानी भाग, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ दिल्ली का कुछ भाग, बिजनौर, रामपुर तथा मुरादाबाद है।
- 14वीं शताब्दी की शुरुआत में अमीर खुसरो ने खड़ी बोली में पहेलियाँ रचीं और साहित्य लेखन में इसकी शुरुआत की। खुसरो को ही खड़ी बोली का जन्मदाता माना जाता है। खड़ी बोली आन्दोलन में उसकी दोनों विधाओ-गद्य व पद्म का विशेष योगदान रहा।
- मध्य युग की धार्मिक परिस्थिति ब्रजभाषा के उत्कर्ष में सहायक हुई, तो राजनैतिक परिस्थिति ने खड़ी बोली को प्रोत्साहित किया। खड़ी बोली मुस्लिम वर्ग के साथ, उर्दू के साथ, चारों तरफ व्याप्त हो गई। राजनीति के क्षेत्र में ब्रजभाषा का साहित्यिक महत्त्व घटने लगा।
- सन् 1800 में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना हुई और अंग्रेजी के साथ-साथ देशी भाषा के अध्यापन पर भी विचार किया गया, जिससे खड़ी बोली की प्रचुरता बढ़ने लगी। जॉन गिलक्राइस्ट के प्रतिनिधित्व में लल्लू लाल जी ने 'प्रेम सागर' और पंडित सदल मिश्र ने 'नासिकेतोपाख्यान' रचा। मुंशी सदासुखलाल और इंशा अल्ला खाँ का नाम भी शुरुआती रचनाकारों में आता है। उन्होंने खड़ी बोली को आगे बढ़ाने का कार्य किया।
- खड़ी बोली आन्दोलन के प्रमुख कवि व उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं- सदल मिश्र 'नासिकेतोपाख्यान' सदल मिश्र की रचना है। उनकी रचना पर ब्रज भाषा का प्रभाव देखने को मिलता है, लल्लू लाल जी 'प्रेमसागर' के रचनाकार लल्लू लाल जी हैं। यह श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के आधार पर लिखी गई रचना है।
- उर्दू-फारसी में सदासुखलाल ने कई पुस्तकें लिखीं। इन्हें "नियाज' नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने 'सुख सागर' नामक ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रंथ श्रीमद्भागवत का हिन्दी अनुवाद है। खड़ी बोली के प्रारम्भिक गद्य लेखकों में उनका ऐतिहासिक महत्व है।
- इंशा अल्ला खाँ 'रानी केतकी की कहानी' के रचनाकार इंशा अल्ला खाँ हैं। यह कृति हिन्दी की प्रथम गद्य रचना मानी जाती है।
- इन सभी लेखकों ने हिन्दी खड़ी बोली गद्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। खड़ी बोली के प्रचार-प्रसार में योगदान देने वाली कृतियाँ हैं।
रचनाकार | रचना |
रामप्रसाद निरंजनी | भाषायोगवाशिष्ठ |
राजा शिवप्रसाद 'सितारे-हिन्द' | इतिहास तिमिर नाशक |
श्रद्धाराम फुल्लौरी | सत्यामृत प्रवाह |
श्रद्धाराम फुल्लौरी | भाग्यवती (उपन्यास) |
खड़ी बोली और भारतेन्दु
- हिन्दी खड़ी बोली को परिष्कृत करने का श्रेय भारतेन्दु को जाता है। उन्हीं के द्वारा हिन्दी नई चाल में ढली तथा सामान्य जन-जीवन और उसकी समस्याओं से सीधा जुड़ाव हुआ। भारतेन्दुयुगीन साहित्य का हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान माना जाता है।
- भारतेन्दु युग की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि गद्य रचना के लिए खड़ी बोली को माध्यम के रूप में अपनाकर युगानुरूप स्वस्थ दृष्टिकोण का परिचय दिया। कालान्तर में लोगों ने भारतेन्दु की शैली अधिक अपनाई।
द्विवेदी जी का खड़ी बोली आन्दोलन में योगदान
- खड़ी बोली को प्रतिष्ठित करना, द्विवेदी युग की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है जिसका श्रेय महावीर प्रसाद द्विवेदी को जाता है। द्विवेदी जी के ही अथक प्रयासों से ऐसा सम्भव हो पाया।
- भारतेन्दु युग तक ब्रज भाषा में काव्य रचना होती थी, परन्तु इस युग में खड़ी बोली में काव्य रचनाएँ लिखी जानी शुरू हुईं। ब्रज भाषा की जगह खड़ी बोली को स्थापित करने का कार्य द्विवेदी जी ने 'सरस्वती' पत्रिका के माध्यम से किया।
- द्विवेदी जी का कहना था कि गद्य व पद्य दोनों की भाषा एक होनी चाहिए। इनकी मान्यता थी कि खड़ी बोली काव्य हेतु पूर्णत: उपयुक्त है। इन्होंने ग्रियर्सन जैसे विद्वानों के सन्देहों को दूर किया, क्योंकि इन विद्वानों की मान्यता थी कि खड़ी बोली में काव्य रचना सम्भव नहीं है।
- द्विवेदीयुगीन काव्य इस शंका को दूर करने में समर्थ हुआ। हिन्दी खड़ी बोली आन्दोलन को लोकप्रिय बनाने में भारतेन्दु, मैथिलीशरण गुप्त, प्रेमचन्द आदि साहित्यकारों ने विशेष योगदान दिया व महावीर प्रसाद द्विवेदी, रामचन्द्र शुक्ल जैसे विद्वानों ने इसे व्याकरण शुद्ध मानक रूप दिया।
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2023 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'खड़ी बोली आंदोलन' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
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