लोहिया दर्शन
- डॉ. राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च, 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जनपद में अकबरपुर नामक स्थान पर हुआ था। वह भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, प्रखर चिंतक व समाजवादी नेता थे।
- डॉ. राम मनोहर लोहिया का समाजवादी दृष्टिकोण डॉ. राम मनोहर लोहिया ने देश के समाजवादी आंदोलन का प्रतिनिधित्व किया था। लोहिया जी मार्क्सवाद व गांधीवाद को अपना आदर्श मानते थे। उन्हीं से प्रेरणा लेकर उन्होंने समाजवाद का निर्माण किया।
- उन्होंने पाश्चात्य समाजवाद के स्थान पर एशियाई समाजवादी विचारधारा पर विशेष जोर दिया, क्योंकि एशिया और पश्चिमी देशों की परिस्थितियों एक-दूसरे से भिन्न थीं। लोहिया समाजवाद को नए ढंग से देखते थे, वह पुराने समाजवाद को समय के अनुसार अप्रचलित समझते थे और उसके स्थान पर नवीन समाजवाद को स्थापित करना चाहते थे।
- नवीन समाजवाद को स्थापित करना सरल नहीं था, उसके लिए वह कुछ सुधारों को अनिवार्य समझते थे, जिनमें विश्व संसद की स्थापना, पूरे विश्व के जीवन स्तर का सुधार तथा उद्योगों व बैंकों का राष्ट्रीयकरण आदि शामिल हैं।
- भारत में विदेशी सत्ता से भारतीयों के लिए नई समस्याएं उत्पन्न हो गई थीं, इन्हीं समस्याओं को दूर करने व बंधनों से मुक्त होने के लिए समाजवाद स्थापित हुआ। लोहिया जी मनुष्य जीवन के सम्पूर्ण भाग का विकास चाहते थे न कि केवल एक भाग का। देश में पूंजीपति मजदूरों, किसानों का शोषण कर रहे थे, जिसको देखते हुए समाजवाद की मांग होने लगी।
- पश्चिमी देशों में वर्चस्ववाद और सामन्तवाद 18वीं शताब्दी में ही दम तोड़ चुका था, परन्तु भारत में यह 20वीं शताब्दी में भी विद्यमान था। भारत में इस विचारधारा को समाप्त करने के लिए समाजवादियों ने ही कदम उठाए व इस विचारधारा पर कड़ा प्रहार किया।
भारतीय समाजवाद की पृष्ठभूमि
- समाजवादियों ने साम्यवाद व वर्चस्ववाद का पुरजोर विरोध किया। समाजवादी विचारक गांधीवादी विचारधारा को साथ लेकर भारत में समाजवाद की शुरुआत करते हैं।
- गांधीजी का 'हिन्द स्वराज्य' आधुनिक परिवेश में भारतीय समाजवाद की सबसे प्रमुख रचना है। उनके बाद के चिन्तकों ने गांधीवाद और पश्चिमी समाजवाद में तालमेल रखने का प्रयास किया। लोहिया, नेहरू, जयप्रकाश नारायण सभी पर मार्क्सवाद का प्रभाव दिखा।
- डॉ. राम मनोहर लोहिया का चिंतन क्षेत्र बहुत व्यापक था। उनका चिंतन क्षेत्र केवल राजनीति तक ही सीमित नहीं था। साहित्य, संस्कृति, इतिहास, भाषा आदि को लेकर भी उनके मौलिक विचार थे। उनकी दृष्टि और विचारधारा का क्षेत्र सीमित नहीं था, बल्कि वह पूरे विश्व को अपनी विचारधारा के अंतर्गत लेते थे।
- उनका नारा था-“मानेंगे नहीं पर मरेंगे नहीं"। वह अन्याय के विरुद्ध लड़ाई के प्रेरणा स्रोत हैं। वह पूरे विश्व में सकारात्मक बदलाव के पक्षधर थे। उनका दर्शन विश्व शान्ति का दर्शन माना जाता है।
- निःशस्त्रीकरण, विश्व-विकास समिति, अन्तर्राष्ट्रीयवाद, संयुक्त राष्ट्र संघ का पुनर्गठन और विश्व सरकार की उनकी योजनाएँ उन्हें विश्व नागरिक और उनके दर्शन को विश्व-दर्शन सिद्ध करती हैं।
उपसंहार
भारत के राजनीतिक लक्ष्यों, लोकतन्त्र, समाजवाद, अहिंसा, समता, विकेन्द्रीकरण को साकार करने का श्रेय भी डॉ. राम मनोहर लोहिया को है। वे मानवतावादी दृष्टिकोण को महत्त्व देते थे, वे नर-नारी में भेद, रंग भेद, जाति भेद व अर्थ भेद को मिटाना चाहते थे, जो वर्तमान में भी प्रासंगिक हैं। मानव विकास में उनकी विचारधारा व्यावहारिक रही है। डॉ. राम मनोहर लोहिया के दर्शन में गांधीवाद संविधान के मूल्यों का प्रभाव दिखलाई देता है, परन्तु उनकी भिन्न विचारधारा ने समाज पर अलग प्रभाव छोड़ा है जो वर्तमान समय में भी मूल्यवान है।
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