Day 27: Study Notes मार्क्सवादी दर्शन

By Mohit Choudhary|Updated : September 18th, 2022

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है वैचारिक पृष्टभूमि। इस विषय की की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए मार्क्सवादी दर्शन के आवश्यक नोट्स में उपलब्ध कराए जाएंगे। इसमें से UGC NET के मार्क्सवादी दर्शन से सम्बंधित नोट्स  इस लेख मे साझा किये जा रहे हैं। जो छात्र UGC NET 2022 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे।

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मार्क्सवाद

  • प्रगतिवाद का सम्बन्ध मार्क्सवाद से है। राजनीति के क्षेत्र में जो मार्क्सवाद है। साहित्यिक क्षेत्र वहीं प्रगतिवाद है। हिन्दी की प्रगतिवादी कविता मार्क्सवाद से प्रभावित है। 
  • प्रगतिवादी विचारधारा का मूलाधार मार्क्सवाद या साम्यवाद है, जिसके प्रवर्तक कार्ल मार्क्स थे। मार्क्सवादी विचारधारा को तीन भागों में बाँटा जा सकता है
  1. द्वन्द्वात्मक भौतिक विकासवाद
  2. मूल्य वृद्धि का सिद्धान्त
  3. मानव सभ्यता के विकास की व्याख्या 
  • मार्क्स के अनुसार, संसार की उत्पत्ति नहीं हुई, बल्कि उसका धीरे-धीरे विकास हुआ। भौतिक जगत ही इस विकास का कारण है। 
  • मार्क्सवाद आत्मा-परमात्मा, स्वर्ग-नरक, मृत्यु के बाद के जीवन का अस्तित्व स्वीकार नहीं करता। मार्क्स के अनुसार, भौतिक विकास को परिचालित करने वाली पद्धति का नाम द्वन्द्व है। द्वन्द्व का अर्थ संघर्ष से है। दो विरोधी शक्तियों के संघर्ष से तीसरी शक्ति या वस्तु विकसित होती है, आगे चलकर तीसरी को चौथी वस्तु से संघर्ष करना पड़ता है और उसमें से पाँचवीं का उद्भव या विकास होता है। 
  • इसी क्रम से भौतिक जगत में नई-नई वस्तुओं एवं शक्तियों का विकास होता है। प्रत्येक नई विकसित वस्तु को मार्क्स ने प्रथम दो से अधिक उच्चतर, श्रेष्ठतर माना है। 
  • इस प्रकार द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का अर्थ दो शक्तियों के पारस्परिक द्वन्द्व से भौतिक जगत का विकास होना है। मूल्य वृद्धि की व्याख्या करते हुए कार्ल मार्क्स ने उत्पत्ति के चार अंग निर्धारित किए हैं- 
  1. मूल पदार्थ 
  2. श्रमिक का श्रम
  3. स्थूल साधन
  4. मूल्य वृद्धि।
  • मार्क्स कहते हैं कि पूंजीपतियों ने श्रमिकों का शोषण किया है। पूंजी के बल पर स्थूल साधनों पर पूंजीपतियों का एकाधिकार होता है। उत्पादित वस्तु में श्रमिकों का श्रम भी शामिल होता है, क्योंकि ये श्रमिक पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाते हैं। 
  • इसी अर्जित लाभ वाली पूँजी से ये श्रमिकों का शोषण करते हैं। मार्क्स का, कहना है कि लाभ पूँजीपति को नहीं बल्कि श्रमिक को मिलना चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं होता, इससे समाज में दो वर्गों-पूँजीपति व श्रमिक का विकास हुआ। 
  • मजदूर, किसान, गरीब या श्रमिक सभी शोषक वर्ग के अन्तर्गत आते हैं। मार्क्स ने शोषण का विरोध किया है, वे इसे समाप्त करके साम्यवाद स्थापित करना चाहते हैं। मार्क्स दुनिया के सभी मनुष्यों को चाहे वे किसी भी जाति या देश से सम्बन्धित हो, दो जातियाँ या वर्ग मानते हैं। 
  • इन्हें चार कालों में बाँटा जा सकता है
  1. दास प्रथा 
  2. पूँजीवादी व्यवस्था
  3. सामंती प्रथा 
  4. साम्यवादी व्यवस्था
  • प्रथम युग दास प्रथा का युग था। इस युग में श्रमिक के व्यक्तित्व, उसके श्रम, उत्पत्ति के साधन व उत्पादन इन सभी पर मालिक अर्थात् शोषक का पूर्ण अधिकार था।
  • दूसरा युग सामन्ती युग के रूप में आया। इस युग में मजदूर के व्यक्तित्व को स्वतन्त्रता मिली, परन्तु शेष तीनों पर शोषण का अधिकार था। दास प्रथा में तो व्यक्तिगत स्वतन्त्रता नहीं थी, परन्तु इस युग में मजदूर को व्यक्तित्व की स्वतन्त्रता प्राप्त हो गई। इस प्रकार यह नई व्यवस्था पुरानी दास प्रथा से बेहतर थी।
  • तीसरा युग पूँजीवादी व्यवस्था का था। इसमें मजदूर के व्यक्तित्व एवं उसके श्रम पर मजदूर का अधिकार हो गया था, परन्तु शेष दो पर अभी भी मालिक (शोषक) का ही अधिकार था।
  • मार्क्स का कहना है कि मजदूर वर्ग को लाभ तो तभी प्राप्त हो सकता है जब उत्पादन के साधनों पर उसका पूर्ण अधिकार हो, ऐसा इस चौथा युग साम्यवादी व्यवस्था में ही सम्भव था और इसी को कार्ल मार्क्स लागू करना चाहते थे। इस व्यवस्था में मजदूरों की सत्ता होती है। इस व्यवस्था में मजदूरों की प्रतिनिधि सरकार द्वारा उत्पादन के सभी साधनों पर नियन्त्रण होता है। 
  • हिन्दी साहित्य में प्रगतिवादी चेतना की शुरुआत 1936 ई. से पहले ही तय हो चुकी थी। रूस के साम्यवाद तथा पश्चिमी देशों का प्रभाव भारत पर हुआ। यहाँ के बुद्धिजीवी वर्ग इससे प्रभावित हुए। छायावाद से साम्यवाद का प्रभाव परिलक्षित होने लगा था। इसमें निराला व पन्त का नाम उल्लेखनीय है।
  • 1935 ई. के दौरान भारत में साम्यवादी आन्दोलन की शुरुआत हो गई थी। पेरिस में 1935 ई. में स्थापित 'प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन' नामक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना हो चुकी थी, जिसकी एक शाखा 1936 ई. में भारत में स्थापित हुई। 
  • इसे स्थापित करने का श्रेय सज्जाद जहीर व डॉ. मुल्कराज आनन्द को जाता है। 1936 ई. में ही प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई जिसका पहला अधिवेशन मुंशी प्रेमचन्द की अध्यक्षता में लखनऊ में हुआ।
  • प्रगतिवादी साहित्य ने शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई एवं किसानों, मजदूरों को संघर्ष के लिए बल प्रदान किया। प्रगतिवादी साहित्य जनसाधारण के लिए काव्य की रचना करता है।

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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'मार्क्सवादी दर्शन' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

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