Day 28: Study Notes अस्मितामूलक दर्शन : दलित, स्त्री विमर्श

By Mohit Choudhary|Updated : September 19th, 2022

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है वैचारिक पृष्टभूमि। इस विषय की की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए दलित, स्त्री विमर्श के आवश्यक नोट्स में उपलब्ध कराए जाएंगे। इसमें से UGC NET के दलित, स्त्री विमर्श से सम्बंधित नोट्स  इस लेख मे साझा किये जा रहे हैं। जो छात्र UGC NET 2022 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे।

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अस्मितामूलक विमर्श (दलित, स्त्री विमर्श)

  • आधुनिक समय में दलित, स्त्री, आदिवासी एवं अल्पसंख्यक अस्मितामूलक विमर्श एक महत्त्वपूर्ण विषय हैं, वर्तमान समय में ये सभी वर्ग अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रहे हैं, अस्मिता से अभिप्राय अपनी पहचान, अस्तित्व व अपने अधिकारों की माँग से है। 
  • समाज में यह सभी वर्ग अज्ञानता के अंधकार में जी रहे थे। अस्मिता का बोध होने के लिए व्यक्ति का शिक्षित होना आवश्यक है। इन सभी वर्गों में शिक्षा प्राप्ति के बाद अपने अधिकारों और अस्मिता के लिए जागरूकता आई।
  • भारत में जाति, लिंग व संख्या के आधार पर भेदभाव होता आया है, इस स्थिति के कारण समाज में विषमता विद्यमान हुई, जिसके चलते वर्तमान समय में दलित, स्त्री, आदिवासी एवं अल्पसंख्यक सभी ने अपने अधिकारों के लिए आन्दोलन किए। साहित्य में भी व्यापक स्तर पर इसकी चर्चा हुई, जो अस्मितामूलक विमर्श कहलाया।

दलित अस्मितामूलक विमर्श

  • साहित्य में भक्तिकाल से दलित अस्मिता का आरम्भ होता है। दलित चेतना के विषय पर ज्योतिबा फूले और डॉ. अम्बेडकर ने महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं, आधुनिक समय के आरम्भ में दलित विमर्श को चेतना रूपी स्वर देने का प्रयास इन्हीं दोनों समाज सुधारकों द्वारा किया गया।
  • आजादी के वर्षों बाद भी दलितों की स्थिति में आशा के अनुरूप सुधार नहीं हुए हैं, जिसके कारण वर्तमान समय में भी अस्मिता सम्बन्धी विषय प्रासंगिक हैं। भारत में हजारों वर्षों से जाति व्यवस्था विद्यमान रही है, जिसके कारण असमानता रूपी समाज स्थापित हो गया है, किन्तु शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् दलितों ने अपनी अस्मिता के सवाल खड़े किए हैं। 
  • वह अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। वह अपने सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक अधिकारों की माँग कर रहे हैं। उनके द्वारा किए गए सवाल सामाजिक न्याय के सवाल हैं। दलित साहित्यकारों व लेखकों ने भी अपनी रचनाओं द्वारा दलित अस्मिता के सवाल सबके समक्ष रखे हैं।
  • ओमप्रकाश वाल्मीकि, श्यौराज सिंह बेचैन व तुलसीराम जैसे प्रख्यात दलित साहित्यकारों ने हिन्दी साहित्य में दलित अस्मितामूलक विमर्श को समझाने की कोशिश की है। 
  • इन्होंने अपनी आत्मकथाओं 'जूठन' (ओमप्रकाश बाल्मीकि), 'मेरा बचपन मेरे कंधों पर' (श्यौराज सिंह बेचैन) व 'मुर्दहिया' (तुलसीराम) द्वारा दलित जीवन के हर पहलू पर प्रकाश डाला है व जनमानस को उसकी अस्मिता पर विचार करने के लिए मजबूर किया है।
  • इनकी कृतियाँ दलितों के जीवन की विडम्बना व संघर्ष को दर्शाती हैं। 'अपना गाँव' (कहानी) मोहनदास नैमिशराय, 'ठाकुर का कुआँ' (कविता) ओमप्रकाश बाल्मीकि, (नो बार) जय प्रकाश कर्दम, 'शिकंजे का दर्द' (आत्मकथा) सुशीला टाकभोरे, ये सभी रचनाएँ दलित मुक्ति संघर्ष आन्दोलन की आन्तरिक वेदना व दलित अस्मिता से पाठकों को रू-ब-रू कराती हैं।

स्त्री अस्मितामूलक विमर्श

  • स्त्री पूरे विश्व की जनसंख्या का आधा भाग है जो संसार पर उतना हो अधिकार रखती है जितना की पुरुष। भारत में स्त्री को देवी का दर्जा दिया गया है, जो सिर्फ एक किताबी बात प्रतीत होती है। स्त्री हजारों वर्षों से शोषण व दमन सहती आ रही हैं और वर्तमान में भी यह स्थिति बनी हुई है।
  • दार्शनिकों का मानना है कि किसी भी समाज की प्रगति उस समाज की स्त्रियों की प्रगति से जोड़कर देखी जाती है, लेकिन भारतवर्ष में स्त्रियाँ वर्तमान समय में भी अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रही हैं। उसकी स्वयं की कोई पहचान नहीं है। पुरुष के साथ जुड़कर उसे पहचान मिली है। स्त्रियों ने सती प्रथा, देवदासी प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, बालिका विवाह, दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा और न जाने कितने ही दमनकारी सामाजिक कुरीतियों को सहा है। इन सभी परिस्थितियों से प्रतिकार करती हुई वह अपनी अस्मिता की बात करती हैं।
  • किसी भी वर्ग का विकास उसकी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्थिति पर निर्भर करता है। आधुनिक भारत में महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार आया है, किन्तु राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व आशा के अनुरूप नहीं है।
  • हिन्दी साहित्य में भी स्त्री अस्मिता की बात होती रही है। आज से लगभग सवा सौ पहले का श्रद्धाराम फुल्लौरी का उपन्यास 'भाग्यवती' से लेकर वर्तमान समय में भी साहित्य में स्त्री अस्मिता को चित्रित किया जा रहा है। 
  • प्रेमचन्द, भगवतीचरण वर्मा, जयशंकर प्रसाद जैसे लेखकों ने स्त्री अस्मिता के सवाल खड़े किए हैं। वह स्त्रियों की तत्कालिक परिस्थितियों को अपनी रचनाओं द्वारा उजागर करते हैं। 
  • हिन्दी साहित्य में स्त्री विमर्श को लेकर महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी गईं, जिससे पाठकों को 'स्त्री अस्मिता व स्त्री विमर्श क्या है' का ज्ञान हुआ। 'परिधि पर-स्त्री' मृणाल पाण्डे, 'दुर्ग द्वार पर दस्तक' कात्यायनी, 'स्त्री का समय क्षमा शर्मा की रचनाओं ने स्त्री की अस्मिता को उजागर किया है।

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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'दलित, स्त्री विमर्श' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

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