व्याकरण
संज्ञा - संज्ञा को नाम भी कहा जाता है किसी प्राणी, वस्तु, स्थान , भाव आदि का नाम ही उसकी संज्ञा कही जाती है।
जैसे - पशु (जाति), सुंदरता (गुण), व्यथा (भाव), मोहन (व्यक्ति), दिल्ली (स्थान)
"राम" खाना खा रहा है - राम व्यक्ति का नाम है।
"घोड़ा" दौड़ रहा है - घोड़ा एक पशु का नाम है।
"आम" में मिठास है - आम फल का नाम है।
सर्वनाम - जिन शब्दों का प्रयोग संज्ञा के स्थान पर किया जाता है उन्हें सर्वनाम कहते हैं। सर्वनाम का अर्थ है सबका नाम। ये शब्द किसी व्यक्ति विशेष के लिए प्रयुक्त न होकर सबके द्वारा प्रयुक्त होते है तथा किसी एक का नाम न होकर सबका नाम होते है।
जैसे - मै, तू, वह, आप, कोई, यह, ये, वे, हम, तुम, कुछ, कौन, क्या, जो, सो, उसका आदि सर्वनाम शब्द हैं।
उदाहरण - 'श्याम' एक विद्यार्थी है। वह रोज स्कूल जाता है। उसके पास सुन्दर साईकिल है। जिससे वह स्कूल जाता है।
उपयुक्त वाक्यों में 'श्याम' शब्द संज्ञा है तथा इसके स्थान पर वह, उसके शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किये गए है। इसलिए ये सर्वनाम है।
विशेषण -
विशेषण और विशेष्य - संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताने वाले शब्दों को विशेषण कहते है। जो शब्द विशेषता बताते है उन्हें विशेषण तथा जिनकी विशेषता बताई जाती है उन शब्दों को विशेष्य कहते है।
जैसे- 'पतली लड़की हंस रही है'। यहां 'पतली' विशेषण है तथा ‘लड़की’ विशेष्य (संज्ञा) है।
क्रिया -
किसी काम का करना या होना क्रिया कहलाता है। अंत में ना प्रत्यय लगा रहता है।
जैसे – खाना , चलना , सोना आदि ।
क्रिया के मूल रूप को धातु कहते है , धातु से ही क्रिया पद का निर्माण होता है इसलिए क्रिया के सभी रूपों में धातु उपस्थित होती है ।
उपसर्ग - जो शब्दांश किसी मूल शब्द के पहले या आदि में जुड़कर उसके अर्थ में परिवर्तन या विशेषता उत्पन्न कर देता है उन शब्दों को उपसर्ग कहते हैं। शब्द के पूर्व में जो अक्षर लगाया जाता है उसे उपसर्ग शब्द कहते है।
उपसर्ग = उपसर्ग शब्द + मूल शब्द = नया शब्द
उदाहरण –
हार एक मूल शब्द है जिसके पहले सम् , “प्र” उपसर्ग जोड़ने पर नये शब्दों का निर्माण होता है।
हार = सम् + हार = संहार
हार = प्र + हार = प्रहार
उपसर्ग के भेद - उपसर्ग के चार भेद होते है -
1.संस्कृत के उपसर्ग
2.हिन्दी के उपसर्ग
3.उर्दू के उपसर्ग
4.अंग्रेज़ी के उपसर्ग
प्रत्यय -
प्रत्यय दो शब्दों से बना है- प्रति+अय। 'प्रति' का अर्थ 'साथ में, 'पर बाद में' है और 'अय' का अर्थ 'चलने वाला' है। अतएव, 'प्रत्यय' का अर्थ है 'शब्दों के साथ, पर बाद में चलने वाला या लगने वाला। प्रत्यय उपसर्गों की तरह अविकारी शब्दांश है, जो शब्दों के बाद जोड़े जाते है।
प्रत्यय = मूल शब्द + प्रत्यय शब्द = नया शब्द
उदाहरण –
मनुष्यता = मनुष्य + ता
प्रत्यय के भेद - प्रत्यय के दो प्रकार है -
(1) कृत् प्रत्यय
कृत प्रत्यय के भेद -
- कर्तृवाचक कृत प्रत्यय
- विशेषणवाचक कृत प्रत्यय
- भाववाचक कृत प्रत्यय
- कर्मवाचक कृत प्रत्यय
- करणवाचक कृत प्रत्यय
- क्रियावाचक कृत प्रत्यय
(2) तद्धित प्रत्यय
तद्धित - प्रत्यय के प्रकार -
- कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय
- भाववाचक तद्धित प्रत्यय
- संबंधवाचक तद्धित प्रत्यय
- गणनावाचक तद्धित प्रत्यय
- गुणवाचक तद्धित प्रत्यय
- स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय
- ऊनवाचक तद्धित प्रत्यय
- सादृश्यवाचक तद्धित प्रत्यय
लिंग -
लिंग का शाब्दिक अर्थ होता है – चिह्न। संज्ञा के जिस रूप से व्यक्ति या वस्तु की नर या मादा जाति का बोध हो, उसे व्याकरण में 'लिंग' कहते है।
मोहन पढ़ता है। (पढ़ता का रूप पुल्लिंग है, इसका स्त्रीलिंग रूप 'पढ़ती' है। )
गीता गाती है। (यहाँ, 'गाती' का रूप स्त्रीलिंग है।)
वचन - वचन का अर्थ संख्या से है। विकारी शब्द के जिस रूप से उनकी संख्या का बोध होता है उसे वचन कहते है।
वचन के प्रकार –
1.एक वचन - शब्द के जिस रूप से एक वस्तु या एक पदार्थ का बोध हो एक वचन शब्द होते है।
जैसे – बालक , लड़का , पुस्तक , मेज आदि।
2.बहुवचन - शब्द के जिस रूप से एक से अधिक वस्तुओं का बोध होता है, वे शब्द बहुवचन होते है।
जैसे – किताबें , कुर्सियां , आदि।
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